जब अर्थ समझ में आया,
वो गीत हृदय से विसर गया।
वेदन को अश्लील कहे,
वो दृश्य नयन से उतर गया।
पत्थर तब तक,पत्थर था,
प्रीत मिली तो बिखर गया।
संवेदन को जो पंख मिला,
भाव हृदय भर शिखर गया।
महलों में थी ताप-तपिश कटु,
तरु छांव मुसाफ़िर ठहर गया।
भय गुलाब को छू न सका,
कांटों में भी निखर गया।
उदय वीर सिंह।
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