शनिवार, 22 जनवरी 2022

संभव नहीं प्रभात न हो...


 




🙏नमस्कार मित्रों!

सुख आये दुख साथ न हो,

संवेदन हो आघात न हो।

लंबी हो सकती है रात कभी

ये सम्भव नहीं प्रभात न हो।


ढलते ढलते कह जाते नीर,

आतप मन की पीड़ा को,

वो पर्वत सम्पूर्ण नहीं जिस

अन्तस बसा प्रपात न हो।


पीर हृदय की समझ न पाए,

जलधि सरित के नीर भेद,

गाये प्रलेख अवसादों का,

वो मन मानस निष्णात न हो।

उदय वीर सिंह।

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