🙏नमस्कार मित्रों!
सुख आये दुख साथ न हो,
संवेदन हो आघात न हो।
लंबी हो सकती है रात कभी
ये सम्भव नहीं प्रभात न हो।
ढलते ढलते कह जाते नीर,
आतप मन की पीड़ा को,
वो पर्वत सम्पूर्ण नहीं जिस
अन्तस बसा प्रपात न हो।
पीर हृदय की समझ न पाए,
जलधि सरित के नीर भेद,
गाये प्रलेख अवसादों का,
वो मन मानस निष्णात न हो।
उदय वीर सिंह।
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