मंगलवार, 29 मार्च 2022

वक्त के मुताबिक...


 





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रश्म टूट जाएगी,रश्म  बना ली जाएगी।

गर नशा कम हैअफ़ीम मंगा ली जाएगी।

खुला रहना दिल का, इतना अच्छा नहीं,

बीच में एक ऊंची दीवार उठा ली जाएगी।

मंचों की भी अपनी अलबेली संस्कृति है,

आंखों में थोड़ी ग्लिसरीन लगा ली जाएगी।

एक सच्चा हमदर्द होने का फन आला है,

वक़्त के मुताबिक तस्वीर लगा ली जाएगी।

उदय वीर सिंह

बुधवार, 23 मार्च 2022

प्रणाम शहीदां नूँ






 🙏कोटिशः प्रणाम शहादत दिवस( 23 मार्च 1931)पर शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ,राजगुरु सुखदेव अमर वलिदानियों को...🌷

** मेरे जज्बातों से वाकिफ है कलम मेरी,

इश्क़ लिखना चाहूँ इन्कलाब लिखा जाता है ।**

- शहीदे आजम भगत सिंह।

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शहीदे आजम तुम्हें खोकर बहुत रोया है चमन,

तेरे दीये की रोशनी आफ़ताब हो रही है।

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बर्बाद न कर सकी हिन्द को हुकूमते नामर्द,

चले मर्द मसीहा-ए-इंकलाब चमन आबाद करके।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

रंग पर्व





🙏🏼 रंग पर्व की दिली मुबारकबाद मित्रों 🌷

दरमियाँ फासले ना हों दिल से दूर कीजिये।

लिए सौगात रंगों की प्रीत भरपूर कीजिये।

कुछ हम आएं कुछ आप जमाना चाहता हमसे,

नफ़रत भूल जाने की सदा मंजूर कीजिये।

मुख़्तलिफ़ रंग देते हैं गुलो गुलशन संवरता है ,

तिजारत प्रीत की रोकें हमें मजबूर कीजिए।

सियासत छोड़ जाती है बहुत से दाग जिस्मों पर

मरहम दे मोहब्बत का उदय मशहूर कीजिये।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 15 मार्च 2022

चिरागों को पहचान देते हैं...


 





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अहसानमंद हैं हम अंधेरों का,

चिरागों को पहचान देते हैं।

उन कदमों का  दर शुक्रिया,

जो मंजिलों के निशान देते हैं।

वो दिल मिटा अपना वजूद,

जमीन आसमान देते हैं।

वो आंखें देकर अपनी जोत,

दूसरों को रोशन जहान देते हैं।

उन ज़ख्मों का लख शुक्रिया

जीने को पायदान देते हैं।

अहसान उन फलसफ़ों का,

जो जमाने को इंसान देते हैं।

उदय वीर सिंह

शनिवार, 12 मार्च 2022

कुछ सिख ले




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कुछ तो जिंदगी के गीत ,गाना सिख ले।

लुटेरों की गली सेआना-जाना सिख ले।

मंडियों में आंसुओं का,कोई मोल नहीं,

झूठ ही सही गम में मुस्कराना सिख ले ।

हो इल्मदां पर तुम्हें दाद  मिलने से रही,

दर मनसबदारों के सिर झुकाना सिख ले।

आदमी को आदमी से सिर्फ प्यार इतना है

घर जले और का अपना बचाना सिख ले।

ले जाएगा ये मुकाम किस दहलीज पर,

महशर ले लिए कुछ बातें बनाना सीख ले।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 10 मार्च 2022

मंजर याद आये,..


 




..मंजर याद आये...✍️

जितना कुरेदा जख्मों को 

वो मंजर याद आये।

अपनों के हाथों में सजे

खंजर याद आये।

बहारों ने छीन ली हमसे,

जगह दी वो बंजर याद आये।

बिना दीवारों के कैद रहा,

वो पिंजर याद आये।

नीलाम करते आबरू ,

वो सिकंदर याद आये।

मुख्तसर न हुई जुर्म की मंजिल

वो नश्तर याद आये।

रहे जालिमों के हमनवा,

वो कलंदर याद आये।

देखती रही कायनात डूबते,

आँसुओं के समंदर याद आये।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 8 मार्च 2022

मुश्किल बना दिया...


 





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राहें मुश्किल थीं,या हमने मुश्किल बना दिया।

काम आ जाती किश्ती अपने हाथों जला दिया।

जिसने वज़ह दी हंसने की बाद बर्बादियों के,

ख़ामोशियों की दे हवेली उसे हमने रुला दिया।

कहा था भूल जाना,ये दुनियावी मेले हैं वीर!

उसने तो याद रखा, मगर हमने भुला दिया।

नफ़ा नुकसान की तिजोरियों को सहेजते रहे,

नफ़ाअपना उसे नुकसान का सिलसिला दिया।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 1 मार्च 2022

ठहरा दिखाई देता...

 

ठहरा दिखाई देता...



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बहता दरिया प्रीत का, ठहरा दिखाई देता।
बुलबुला किस काम का सुनहरा दिखाई देता।
आगे आग और धमाके,फिर भी जा रहा है,
इंद्रियों से शायद जातक बहरा दिखाई देता।
कभी इधर तो कभी उधर नजरें घुमा रहा है,
होठों पर मुस्कराहट सदमा गहरा दिखाई देता।
हर हाथ में परोसे अब हथियार जा रहे हैं,
तालीम की दहलीज पर पहरा दिखाई देता।
गुमनाम हो रही कहीं आदमियत की तासीर,
विनाशकों का आज झंडा फहरा दिखाई देता।

उदय वीर सिंह।