शुक्रवार, 20 मई 2022

दिगम्बर हो रहा है...


 






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था भरोषे की शाल में दिगम्बर हो रहा है।

ज़हर बंद था शीशी में समंदर हो रहा है।

जरूरत  थी  नख़लिस्तान  कि  सहरा में,

शीतल पवन का झोंका बवंडर हो रहा है।

जरूरत  थी आग  की बुझे हुए  चूल्हों में,

जल रही है ज़मीन मौन अम्बर हो रहा है।

तंजीमों का रंगमंच भीअब रंगीला हो गया,

सिकंदर हो रहा , कोई  कलंदर हो रहा है।

उदय वीर सिंह।

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