🙏सतनाम श्री वाहेगुरु जी !
" बंजर होती संस्कृति"
मेर नवीन कहानी संग्रह
प्रिय सुधीजनों, मित्रों, स्नेहियों! खुशी के पल आपसे साझा करते हुए हर्षित हृदय से आप सबके स्नेह व सम्मान का ऋणी हूँ।
मेरे बहुप्रतीक्षित नवीन कथा संग्रह " बंजर होती संस्कृति " का प्रकाशन हो ही गया। उसकी प्रतियां आज मुझे प्राप्त हुईं। पुस्तक आवरण, संक्षिप्त विन्यास आप सबके अवलोकनार्थ संप्रेषित कर हृदय आह्लादित भावों से भर उठा।
पुस्तक का प्रकाशन स्वनामधन्य प्रकाशन " हंस प्रकाशन " से हुआ है। ख्यातिलव्ध प्रकाशन व माननीय प्रकाशक का हृदय से आभार ।
यह कथा संग्रह भी पूर्व रचना कृतियों की तरह आप सबके स्नेह से सिंचित होगा ऐसा मेरा दृढ़ विस्वास है।
मैं कितना आपके मानदंडों पर खरा उतरा हूँ ,आपकी आलोचना समालोचना, प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।
पुनः सर्वोपरि श्री गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज की छांव , गुरुशिक्षकों ,परिजनों पाल्यों, सम्बन्धियों मित्रों सुधि- पाठकों शभचिन्तकों को मेरा विनीत भाव से नमन व हृदय से आभार।
उदय वीर सिंह।