........यूँ नहीं आयी.✍️
पेड़ों के हर पात पर हरियाली यूँ नहीं आयी।
कांटों के बीच गुलाब पर लाली यूँ नहीं आयी।
अपने वजूद को ही दफ़्न कर दिया मिट्टी में,
जड़ों के नाम कोरी गुमनामी यूँ नहीं आयी।
तूफानों की नफरत ने जलने न दिया पलभर
बुझे दीये झोपड़ों में रात काली यूँ नहीं आयी।
गुजर गए कितने जमाने मसर्रत के इंतजार में
अक़ीदरमंदों के लबो से गाली यूँ नहीं आयी।
उदय वीर सिंह।
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