काश! सच को जरा सहारा मिलता।
मुल्जिम को जीवन दुबारा मिलता।
न बेचते हम अपना जमीरो ईमान,
तुमको तुम्हारा हमको हमारा मिलता।
न देते हम नफरत के पैगामों को हवा,
तूफान में किश्ति को किनारा मिलता।
झूठ के पांवों को गर पंख नहीं मिलते,
जमाने को पसंदीदा शोख शरारा मिलता।
इंसान को इंसानियत की आंखें मिलतीं,
न होती ऊंच नींच की खाई न बंटवारा होता।
उदय वीर सिंह।
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