मंगलवार, 13 सितंबर 2022

फुलकारियाँ निलेंगी...






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विस्वास रखो  विरमित  हुए  हाथों से,

चित्रकारियां निकलेंगी।

मौन हैं स्तब्ध नहीं इन होठों से प्रलेखों

की आरियां निकलेंगी।

अग्निपथ का शमन होनाअवश्यम्भावी है 

शांति की सवारियां निकलेंगी।

पी लेते हैं गरल समभाव की गर्वित

संभावनाओं पर,

उन्माद आघात पर प्रतिघात की 

चिंगारियां निकलेंगी।

जलकर भी उर्वरता नहीं खोई अपनी

ममतामयी जमीन,

आज वीरान राख भरी कल मर्मस्पर्शी

फुलकारियाँ निकलेंगी।

न पढ़ सका कोई सौदाई चमन की संवेदना अन्तर्वेदना,

दमन  के बाद भी गुलों की क्यारियां

निकलेंगी।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

इल्ज़ाम मिलता रहेगा....


 





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जब तक झूठ को मुकाम मिलता रहेगा।

सच को हमेशा इम्तिहान मिलता रहेगा।

दरबारी कलम लिखेगी जब भी लिखेगी,

हिंद को मानसिक गुलाम मिलता रहेगा।

रोज मरने की आदत पुरस्कृत होती रही,

बाद बेगुनाही के इल्ज़ाम मिलता रहेगा।

सेवा त्याग कुर्बानी की तासीर कायम रही

इंसानियत  को  सतनाम मिलता रहेगा।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

शिक्षक गुरु....





 शिक्षक दिवस को समर्पित...🙏🏻

उज्वल पथ गंतव्य सुघर गुरु  

सास्वत  नेह तुम्हारा है।

वीथी समस्त मधुमय सबल 

कली किसलय  पात संवारा है

अंबर अनंत दृग बहु विशाल 

सूक्ष्म  तत्व  के  विश्लेषक,

स्पंदन संवेदन मर्म अनुभूति

गुरु आश्रय प्रेम की धारा है।

प्रज्ञा यश पौरुष कर्तव्य-प्रणेता

न्याय नीति का अनुशंसक

क्षमा दया करुणा में शीतल 

कामी वंचक को अंगारा है।

अंधड़ झंझावात काल दुर्दिन

की धार निराशा में,

प्रलय की निर्मम नदिया में

गुरु  पावन सरस किनारा है।

उदय वीर सिंह।

59।22

सोमवार, 5 सितंबर 2022

धर्म जाति के तालों में....





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सागर  डूब  रहा जा रंगमहल के प्यालों में।

नदिया डूब रही है  कीचड़ -छिछले नालों में।

एक धरती का टुकड़ा कितना पिछड़ा जाता,

वतन हमारा डूब रहा धर्म-जाति के तालों में।

इश्तिहार  उत्थान  के  टूटे बिखरे बिलट गए,

भूख यतिमी मजबूरी आयी सबकी थालों में।

पाखंडों की हवेली से उच्च हिमालय बौना है,

मनुज जला जाता उन्माद भेद की ज्वालों में।

उदय वीर सिंह।