रविवार, 30 अक्तूबर 2022

फरीद कहाँ पाओगे....






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नफ़रत से  मोहब्बत कहाँ खरीद पाओगे।

सिर्फ रक़ीब ही मिलेंगे मुरीद कहाँ पाओगे

आंखों से जहालत का चश्मा जो नहीं उतरा

गरीबों के अंजुमन में गरीब कहाँ पाओगे ।

न पा सका मीरा सूर तुलसी कबीर की छांव,

अनुरागी कबीर व बाबा फरीद कहाँ पाओगे।

बुतों  से हमदर्दी  है  कि वो कुछ कहते नहीं,

डूबते  दिलों  के बीच उम्मीद कहाँ पाओगे।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

बंदी छोड़ दिवस

 ..... बधाई  व शुभकामनाएं✍️

बंदीछोड़ दिवस (अक्टू 1621 ई.)

   सिक्ख धर्म के छठवें पातशाह गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी महाराज के रूहानी व दुनियावी बुलंद रुतबे के आलोक को स्वीकार करते हुए मुग़ल सल्तनत के तत्कालीन बादशाह जहांगीर ( शासन काल 1605 से- 1627 ) ने गवालियर (मध्य प्रदेश) के किले में 52 हिन्दू राजा बंदियों व छठवें गुरु महाराज भी  दो वर्ष से कैद थे। 

बादशाह की  शारिरीक व शासकीय हालत लगातार  खराब होती जा रही थी ।तमाम कोशिशों के बाद भी मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं। बादशाह को  ख्वाबों में बार बार गुरु साहिब को रिहा करने का इल्हामी हुक्म मिल रहा था ,जिससे वो बहुत परेशान था,समस्या से निजात के लिए अपनी मरकजी हुकूमती कैबिनेट व फकीरों की सलाह पर गुरु महाराज को उसने रिहा करने का फैसला में कर लिया । 

   किंतु गुरु साहिब अकेले रिहा होने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने बादशाह को अवगत कराया  कि वे बगैर 52 बंदी राजाओं के कैद से रिहा नहीं होंगे। 

  सल्तनत की नजर में इन 52 भूपों को छोड़ना आत्मघाती कदम था। परंतु वे गुरु साहिब के फैसले के आगे विवश थे ,सशर्त  सबकी रिहाई का फरमान ई.सन 1621 में जारी हुआ।

  जिन राजाओं से सल्तनत के अस्तित्व को गंभीर खतरा था इस आशय के साथ रिहाई का आदेश जारी किया गया कि जितने राजा गुरु हरिगोबिन्द साहिब को पकड़ कर साथ जा सकते हों, कैद से मुक्त होकर जा सकते हैं।

  इसी शर्त के अनुपालन में गुरु महाराज  ने 52 कलियों (पताकों )का एक अंगरखा बनवाया जिसे पकड़ समस्त 52 कैदी हिंदू भूप किले से बाहर निकल कैद से मुक्त हुए।

  गुरु साहिब इसी दिन अमृतसर साहिब (पंजाब) पहुंचे यह शुभ दिन ज्योति पर्व  दीपावली का था। सिक्ख व हिन्दू जनमानस द्वारा दीप प्रज्वलित कर हृदय से  स्वागत व वन्दन किया गया।

  इसी दिन से इस दिवस को " दाता बंदी छोड़ दिवस" के रूप में देश दुनियां में खुशी के साथ मनाया जाने लगा ।यह सिक्ख व दिन्दू जन-मानस के लिए अमूल्य व मान का दिन था।

जिस ग्वालियर के किले में गुरु साहिब व राजा कैद थे उस किले की जगह 1968 में  संत अमर सिंह जी द्वारा एक भव्य गुरुद्वारा बनवाया गया। जिसे ' दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ' के नाम से आज जाना जाता है।

उदय वीर सिंह।


🔥चिराग जलते रहें...


 



🔥ज्योतिपर्व की अनंत शुभकामनाएं मित्रों 🙏



दुआ करो चिराग जलते  रहें...।

आंधियों को लगाम दो,चिराग जलते रहें।

हर  राह  रौशनी हो  काफ़िले  चलते रहें।

अंधेरी सल्तनत को चिराग कुफ्र लगते हैं,

सलामत रहें वो हाथ कि चिराग बनते रहें।

अंधेरों  के  लश्कर  निगल लेंगेआदमियत

दुआ  करो  हर दहलीज चिराग़ सजते रहें।

सूरज ढल जाता है चिरागों की वफ़ा देकर,

कहीं मुख़्तसर न हो जाएं जज्बात जगते रहें।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

दीप जले... तम गया गया

 दीप जले त..म गया गया...

हर घरों को मिले रोशनी कम न हो।
हो हृदय में उजाला नयन नम न हो।
पूछते  हैं  नहीं  दीप  तुम  कौन  हो,
हर चौखट पर जलते नमन कम न हो।
ऊंचे  प्रतिमान  पग प्रेम  की  वल्लरी,
प्रकाशित हो कण-कण कहीं तम न हो।
आस  सबकी  पूरे ,गर्व  गरिमा  मिले,
लोक -विध्वंस जाए सृंजन कम न हो।
भव्य आलोक  की काव्य-धारा प्रखर,
रस -रजे भाव से जी जतन कम न हो।
उदय वीर सिंह।