शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

सफ़र ए-शहादत


 



....सफर-ए-शहादत...✍️

सवा  लाख  ते  एक लड़ाऊं

चिड़ियन  ते  मैं बाज तुड़ाऊँ,

तबै गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ.....।

           (श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज)

चमकौर का युद्ध ( 21,22,23 दिसंबर 1704 ई. (विश्व काअद्वितीत्य युद्ध)

   गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज सहित, 2 साहिबजादे, 40 गुरू-सिक्ख और 10 लाख से अधिक मुग़ल फौज के बीच लड़ा गया युद्ध । जिसमें दो साहिबजादे बाबा अजित सिंह जी (उम्र 17 वर्ष), बाबा जुझार सिंह जी (उम्र 14 वर्ष),और 40 गुरू-सिक्खों ने अद्वितीय अकल्पनीय शौर्य साहस व रण कौशल के साथ रणभूमि में शहादत पाई।  

****

शब्द नहीं मिलते मर्म बयां करने को 

जबान हारी लगती है।

एक  तूँ  ही  मीरो  पीर है दाते बाक़ी 

दुनियाँ भिखारी लगती है।

मांगा तो ख़ैर  ही मांगा पूरी कायनाते 

इंसानियत के वास्ते,

तेरीआशीष कीओट किसी कहकशां से

कहीं भारी लगती है।

उदय वीर सिंह🙏🏼

बुधवार, 20 दिसंबर 2023

जब आग पानी का व्यापार करने लगे







 ........✍️

देशभक्ति पर प्रबचन गद्दार करने लगे।

न्याय  का प्रबंधन अखबार करने लगे।

आग  न  रह  पाएगी  फिर कभी आग,

जब आग पानी का व्यापार करने लगे।

बांझपन का शिकार हो जाएगी वो नस्ल,

यदि अपराध की रक्षा दरबार करने लगे।

लकवाग्रस्त हो जाएंगे औषधि शोध-संस्थान,

रोग  का अध्ययन तीमारदार करने लगे।

कितनी होगी रखी कोईअमानत महफ़ूज,

नकबजनों की पहरेदारी पहरेदार करने लगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 17 दिसंबर 2023

शहीद गुरु तेग बहादुर जी महाराज..


 🌹 " हिन्द की चादर"🌹

" शहीद गुरु तेग बहादुर जी महाराज "

नवम पातशाह श्रीगुरु तेग बहादुर जी महाराज के पावन वलिदान दिवस ( मिती 24 नवंबर 1675 चांदनी चौक दिल्ली ,आततायी मुग़ल शासक औरंगजेब के द्वारा इस्लाम क़बूल न करने पर निर्ममता पूर्वक शहीद किया गया) के अवसर पर कोटिशः प्रणाम वंदन🙏

***

गुरु  पीर  है तूं मीर है तूं 

हमराह  है  परमार्थ  की।

दर सिर झुकाता हिन्द तेरे 

त्याग की वलिदान की।

इश्क़ तेरा धर्म से इंसान से ईमान से,

फानूस बनकर आप आये

 राष्ट्र कौम के सम्मान की।

श्री गुरु चरणों में शत शत नमन..🌹🙏

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

रुबाई नहीं होगी


 





......✍️

समस्या हमारी  है पराई नहीं होगी।
बिना फतह  के  रिहाई  नहीं  होगी।
रखना होगा शब्दों को सही सतर में,
बिना अल्फाज़ों के रुबाई नहीं होगी।
गंदगी जमा है  ये कहना काफी नहीं,
बिना सड़क पे उतरे सफाई नहीं होगी।
रिश्ते  बने रहेंगे कई पीढ़ियों तक वीर
आये मेहमान की क्यों विदाई नहीं होगी।
रास्ते  कभी  बंद न होंगे अमनो चैन के,
कैसे मसीहों की आवाजाही नहीं होगी।
वक्त ने न दिया इससे उदास क्यों होना
बदल देंगे वक्त कोई ढिलाइ नहीं होगी।
उदय वीर सिंह।

बुधवार, 15 नवंबर 2023

उदास नहीं होता...








..........✍️

मूर्ख को निज मूर्खता का अहसास नहीं होता।

विद्वता पर कदाचित उसे विस्वास नहीं होता।

ढूंढता है चटख उजालों में गहन अंधेरा अक्सर

किये निज पापों का कभी पश्चाताप नहीं होता

काटता है उसी  डाल को जिसपर बैठा होता है

जलाकर अपना घर  किंचित उदास नहीं होता।

काग़जी  नाव से किनारा पाने का खूब कौतुक

खड़ा हो जमीन पर कहता आकाश नहीं होता।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

सत्य को सत्य कहा हूँ मैँ...







 .....✍️

सत्ता और सिंहासन के वृत

पथ  से   दूर   रहा  हूँ  मैं।

अभय रहा निशिवासर मन

सत्य  को  सत्य कहा हूँ मैं।

षडयंत्रों, घातों  की  विधि 

विजय कदाचित मिल जाती,

प्रवाह पाप की विष धारा के

सदा  प्रतिकूल  बहा  हूँ  मै।

किंचित दुख  न व्याप  सका 

कभी हार -जीत  के होने पर

चलने  की अटल प्रत्याशा में 

भू कितनी  बार  गिरा  हूँ  मैं।

अवसर न मिला रोने हंसने का

निज राह  कहे  चलते  रहना,

बिसर  गया अपना उर  वेदन

घावों को कितनी बार सिला हूँ मैं।

उदय वीर सिंह।

13।11।23

रविवार, 12 नवंबर 2023

दाता बंदी छोड़ दिवस(मुक्ति दिवस)


 
🌹" दाता बंदी छोड़ दिवस " 🌹
की समस्त सिक्ख पंजाबी व मनुष्य जाति को लख लख बधाई जी 🌹🌹
   सिक्ख धर्म के छठवें गुरु , गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी महाराज के रूहानी व दुनियावी बुलंद रुतबे से भयभीत तत्कालीन मुगल बादशाह जहाँगीर ( शासन काल 1605 -1627) ने गुरु महाराज को मुगलिया सल्तनत के प्रति गंभीर खतरा व विद्रोही तत्व मान अपने सिपहसालारों के मशविरे पर उन्हें ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के किले में बंदी बना सख्त पहरे में रखा ।
     उसी किले में मुग़ल सल्तनत के दुश्मन 52 अन्य हिन्दू राजाओं को भी बंदी बना कर दो वर्ष से रखा गया था। ये मुगल सल्तनत व बादशाह के प्रति विद्रोह के कारक थे। इसीलिए इनको राज्य निर्वासन व कद की सजा दी गयी थी।
  बादशाह की धार्मिक आर्थिक व अन्यायपूर्ण आततायी नीतियों से आवाम बहुत पीड़ित थी ,विद्रोह की आशंका निरंतर बढ़ती जा रही थी।
गुरु महाराज को कैद करने के कारण  सिक्खों ही नहीं आम जन मानस में घृणा व असीम रोष व्याप्त था।
    बादशाह नापाक व अदूरदर्शिता भरी नीतियों के कारण जहांगीर की शासकीय सामाजिक आर्थिक स्थिति शिथिलता को प्राप्त हो रही थी।नियंत्रण निष्प्रभावी हो रहा था । चिंता व मानसिक परेशानियां बढ़ती जा रहीं थीं। बादशाह की शारिरीक हालत व शासकीय पकड़ लगातार  खराब होती जा रही थी ।तमाम कोशिशों के बाद भी मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं।
    स्वभाव से धार्मिक बादशाह को उसके ख्वाबों में बार-बार गुरु साहिब को रिहा करने का इल्हामी हुक्म मिल रहा था । जिसको  वह अनसुना  कर देता । परन्तु निरंतर इलाही  पैग़मों से आजिज आकर उसने इस समस्या के निदान हेतु अपने आध्यत्मिक पीर फकीरों सिपहसालारों से विचार विमर्श किया। जिससे इस समस्या से निजात पाया जा सके।
   आखिर बड़े सोच विचार के बाद उसने अपनी मरकजी हुकूमती कैबिनेट मेम्बर्स व फकीरों की सलाह पर गुरु हरि गोबिन्द साहिब जी महाराज को अपनी कैद से रिहा करने का फैसला अक्तूबर 1621  (ई स) में कर लिया ।
    जब इस फैसले से गुरु महाराज को अवगत कराया गया वो इसे मानने से इनकार कर दिए। गुरु साहिब इस कैद से स्वयं अकेले रिहा होने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने बादशाह को अवगत कराया  कि वे तुम्हारी कैद में रखे गए 52 बंदी हिन्दू राजाओं की रिहाई के बिना ग्वालियर किले की कैद से वे अकेले रिहा नहीं होंगे।
अब नई समस्या अत्यंत विकट थी सल्तनत की नजर में इन 52 राजाओं को छोड़ना आत्मघाती कदम था। परंतु वे गुरु साहिब के फैसले के आगे विवश थे । सशर्त पुनः 52 हिन्दू राजाओं की  रिहाई का फरमान जारी हुआ। परंतु शर्त यह रखी गयी कि गुरु महाराराज को एक साथ स्पर्श करते हुए ( पकड़े हुए) अगर ये बाहर निकल जाएं तो  ये हिन्दू राजा कैद से मुक्त हो सकेंगे।
गुरु महाराज ये शर्त मनाने को तैयार हो गए।
  इसी शर्त के अनुपालन में गुरु महाराज  ने 52 कलियों (पताकों )का एक चोला (लबादा) बनवाया जिसे पकड़ कर समस्त 52 हिंदू कैदी भूप किले से बाहर निकल कैद से मुक्त हुए।
  गुरु महाराज बंदी मुक्त हो दीपावली के दिन ही अमृतसर साहिब (पंजाब) पहुंचे। यह शुभ दिन ज्योति पर्व  दीपावली का था। समस्त  सिक्ख व हिन्दू पंजाबी जनमानस द्वारा दीप प्रज्वलित कर हृदय से स्वागत व वन्दन किया गया।
  इसी दिन से इस दिवस को " दाता बंदी छोड़ दिवस" के रूप में देश दुनियां में खुशी के साथ मनाया जाने लगा ।यह सिक्ख व दिन्दू जन-मानस के लिए अमूल्य व मान का दिन था।
   जिस ग्वालियर के किले में गुरु साहिब व राजा कैद थे उस किले की जगह 1968 में  संत अमर सिंह जी द्वारा एक भव्य गुरुद्वारा बनवाया गया। आज जिसे ' दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ' के नाम से आज जाना जाता है। विद्यमान हैं।
उदय वीर सिंह।
12।11।23


झूठ पैगाम का हिस्सा बन जायेगा







 .......✍️

झूठ  पैगाम  का  हिस्सा बन जाएगा।

लुटेरा किताबों में फरिश्ता बन जाएगा।

खुले जख़्मों पर नमक छिड़कने वाला 

एक दाग़दार कैसे  बिरसा बन जायेगा।

वाकिफ़ न था अपना घर रौशन करके,

अंधेरों से दुश्मनी का रिश्ता बन जायेगा

दब  कर रह जाएगा गहराईयों में इतनी,

सत्य समाज का एक किस्सा बन जायेगा।

गूंगा  बहरा  हो जाएगा अपने हिसाब से

फरेब पत्थर  कभी  शीशा बन जायेगा।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

....जिंदगी सामान तो न थी.✍️


 






......✍️

जिंदगी अपनी थी मेहमान तो न थी।

दुआ थी अपनों की सामान तो न थी।

भरी थी गमों खुशियों की तकरीर से,

ज़मीं पर थी खालीआसमान तो न थी।

सजी थी  ईमानो इश्क के बेल बूटों से,

दौलत से भरा खाली मकान तो न थी।

जुनूनी रफ्तगी  है  दौड़ में हमीं-हम के, 

मोहब्बत के सफ़र में परेशान तो न थी।

दस्तक  दहलीजों पर तौहीद की आयी,

कभी जबान हिन्दू मुसलमान तो न थी।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

गुलाम से प्यार ..


 





.........✍️

ये कान  फ़रेब पर ऐतबार जियादा करते हैं।

ये मालिक गुलाम से पियार जियादा करते हैं।

पगार तो मुई खलिस दूज का चांद लगती है,

दरबारी  इनाम  से  पियार जियादा  करते हैं।

जमाना मशगूल रहता है तलाश में हीरे  की,

जमाल से कमतर इश्तिहार जियादा करते हैं।

कांटों की वसीयत में फूलों की चाशनी रखते,

मक्कार भरोषे का कारोबार जियादा करते हैं

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 मार्च 2023

हर आंख सवाली नहीं होती...


 






........✍️

माना कि यहां सवाल बहुत  हैं जी,

मगर हर आँख  सवाली नहीं होती।

माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,

मगर  हर  झोली  खाली नहीं होती।

माना  बाजार नफ़ा- नुकसान का है, 

मगर हर सौदों  में दलाली नहीं होती।

हसरतों को जमीन मिले सब चाहते हैं,

होली तो किसी की दिवाली नहीं होती।

तन का लाल खून बहता जिस नस से

वह गोरी  किसी की काली नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 11 मार्च 2023

जमाने लगे.....


 






......✍️

जमाने  लगे  सच का सत्कार करने में।

पल  न  लगा झूठ का व्यापार करने में।
जलता रहा दौर  साजिशो  फ़रेबी आग,
लश्कर लगे रहे सच को लाचार करने में।
झूठ  की परत अनवरत मोटी होती गयी,
झूठ  लगा रहा सच को तार तार करने में।
झूठ की  सोहबत शौक, शान  बनने लगी,
मौत नसीब हुई सच को स्वीकार करने में।
ये सच है कि सच कोई फूलों की सेज नहीं
बहुत  मुश्किल  है सच पे एतबार करने में।
उदय वीर सिंह।
10।3।23

बुधवार, 8 मार्च 2023

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस


 


.विश्व महिला दिवस  (8 मार्च)की

बधाई मित्रों !..✍️


संस्कार की बात करें तो कलम
संस्कारी हो जाये।
पूर्वाग्रहों  को तोड़ मुख्य-धारा में
नारी हो जाये।
ताड़ना की अभिव्यक्ति को  मोक्ष
दे पाएं,
नारी समतल धरातल की निर्विवाद
अधिकारी हो जाये।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 मार्च 2023

इश्तिहारों से मिलते हैं...







 .

......✍️

चलो हम इश्तिहारों से मिलते हैं।

खूबसूरत रंगो बहारों से मिलते हैं।

ठहरा खाली पेट  कोई बात नहीं,

भरे हुए कागज़ी नारों से मिलते हैं।

ये जमीन तो कदमों के नीचे है जी,

चलो सूरज चांद तारों से मिलते हैं।

आमो-खास के हैं ये दयार खुले हुए,

चलो  ऊंची  दीवारों  से  मिलते हैं।

अमन तो आग से है कोई बचा नहीं,

चलो हारे हुए किरदारों से मिलते हैं।

मिठास पकवानों के ख़्वाब में रह गई,

हैं  खाली हाथ त्योहारों से मिलते है

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति"


 




.......✍️

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के आयोजन (25।2।23 से5।3।23) को हमारी हार्दिक बधाई व नेह भरी शुभकामनाएं। इस अनुपम मेले का अपना विशिष्ट अतीत स्थान व गौरव है।

 हमें आत्मिक खुशी है कि इस पुस्तक मेले में, हाल संख्या-2 स्टाल न. 387 पर " हंस प्रकाशन " द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक * बंजर होती संस्कृति * की भी उपस्थिति होगी।

    आप सबकी आशीष व स्नेह मिलेगा मेरा दृढ़ विस्वास है।

उदय वीर सिंह।

अपना मायिना है...


 






........✍️

कोई दक्ष, बाम किसी का दाहिना है।

पांव की रफ़्तगी मंजिल को नापना है

यह बात अलग  है हम  पढ़ नहीं पाए,

हर  तख़लीक़  का अपना  मायिना है।

रखना  मजबूरी नहीं  एक  जरूरत  है,

हर  एक शख़्श का अपना आयिना है।

पत्थर  को कभी फूल नहीं कहा शीशा

यह  जानकर  भी  कि उसको टूटना है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

जफ़र किस काम का होगा..

 .......✍️

हम ख़ुशहाल हुए जी, दूसरों को दर्द देकर।

सोए खूब दूसरों को जागने का फर्ज़ देकर।

विपदा  में अवसर तलाशा मोटी कमाई का, 

मालामाल  हुए  मोटे व्याज का कर्ज़ देकर।

खून-पसीने का मोल अदा किया  इस तरह,

हमने वापस किया जी लाइलाज़ मर्ज़ देकर।

फिज़ाओं का बे-सरहद होना बे-अदब माना,

नंगा  किया शज़र को  हमने पत्ते  ज़र्द देकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

खोया खोया मिलता है....

 ......✍️

पाखंड  की   प्रचीर  में सत्य 

कहीं खोया-खोया मिलता  है।

पाखंड रत जगराते में है सत्य 

कहीं  सोया- सोया  मिलता है।

अहंकार  मद  की  पूंजी  का 

गगनचुम्बी होना आश्चर्यजनक

सत्य ,सरलता की भूमि में कांटा 

तमाम  बोया -बोया मिलता है।

टूट गया तर्कों का धागा,साहस 

सीने  में  रोया - रोया मिलता है

हमने अपनी हार को भी जीत

कहना  सीख  लिया   जबसे,

विजय अनुसंधान का परिमल

कहींअनाम  लकोया मिलता है।

उदय वीर सिंह।


फ़रेब की छत गिरी है,....

 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

बुलंदियों पर रही नफ़रत तो प्यार भी मुमकिन।

फ़रेब की छत गिरी है,  तो दीवार भी मुमकिन।

दर्द का बुत  हो  जाना  दहशत की पेशबंदी है, 

कागज  है कलम है , तो अख़बार भी मुमकिन।

रंग कोसने लगे अपनी मुख़्तलिफ़ पैदाइशों पर

सवाल उनकी हाजिरी पर तकरार भी मुमकिन। 

बे-वक्त है माजी के पन्नों का,सरे-आम हो जाना

कागजी कारवां है कागजी सालार भी मुमकिन।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

रखें तो कहां रखें....


 






.......✍️

तेरी कागज की बागवानी रखें तो कहां रखें।

बे-मतलब की  मेहरबानी  रखें  तो कहां रखें।संवेदी शब्दों की कमीं नहीं बोल कर तो देखो,

मुझे नापसंद है बद्दजुबानी रखें तो कहां रखें।

कुछ जमीरो जमीन की बात होतो गौर भी करें

तेरी बे-सिरपैर की कहानी रखें तो कहां रखें।

जमीं पर फैली आग आसमान भी कितना दूर,

दुश्वार दो दिन की जिंदगानी रखें तो कहां रखें।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

कम पानी क्यों है..






 
.........✍️

इंसानियत से इतनी  परेशानी क्यों है।

कांटों की चारो तरफ बागवानी क्यों है।

जुल्म तो  आख़िर  जुल्म ही ठहरा जी,

सितमगरों पर इतनी मेहरबानी क्यों है।

अमन  की  किताबों  का हवाला देकर,

अमन  से  ही  इतनी  बेईमानी  क्यों है।

जो आपको अच्छा नहीं दूसरों को कैसे,

प्रीत की दरिया इतना कम पानी क्यों है।

अंगारों  को फूल कहने  का शौक देखा,

मसर्रती जमीं पे दर्द की कहानी क्यों है।

उदय वीर सिंह।

कमाल के धंधे...


 





🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

अर्थ के नाम पर  कमाल के धंधे।

धर्म के  नाम  पर कमाल  के बंदे।

एक बहाना चाहिए लूटने के लिए,

सहारा के नाम पर कमाल के कंधे।

देखते हैं सब कुछ परहेज बोलने से,

दीद  के  नाम  पर कमाल के अंधे।

बेख़ौफ घूमते कत्लेआम के मुल्जिम,

डर  के  नाम  पर ये कमाल  के डंडे।

कायम कई दीवार  दिखाई नहीं देतीं,

दहशत के नाम पर कमाल  के फंदे।

उदय वीर सिंह।

5।2।23

रविवार, 29 जनवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति "






 🙏🏼 नमस्कार सुधि मित्रों!

क्षमा प्रार्थी हूँ आप सभी सुधि मित्रों स्नेहियों का ,मेरी पुस्तक  " बंजर होती संस्कृति " (कहानी संग्रह )सरलता से उपलव्ध होने में देर व कठिनाई हुई। पुस्तक आमेजन व फ्लिपकार्ट पर अब उपलव्ध है।आप इसे अब प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली के स्नेही जन ,पाठक इसे हंस प्रकाशन /डिस्ट्रीब्यूटर से भी आसानी से ले सकते हैं। सुदूर के मित्र नीचे दिए लिंक से प्राप्त कर सकते हैं।-

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  आप सभी से निरंतर प्राप्त हो रहे प्यार व शुभेक्षाओं का सदैव ऋणी हूँ।आपका निर्देश व अनुशंसाएं सर्वथा स्वीकार।

उदय वीर सिंह।

फ़िजाएँ बेईमान लगती हैं...







 🙏🏼नमस्कार मित्रों !

मुकद्दस  हवाएं  भी परेशान लगती हैं।

पातों की खड़खड़ाहट तूफान लगती हैं।

आग से शोर तो लाजमी है  बस्तियों में,

महलों की कैफ़ियत शमशान लगती हैं।

गिर रहे पत्ते पेड़ों  से कितने जर्द होकर,

ये फ़िजाएँ बसंत की  बेईमान  लगती हैं।

उड़ रहे परिंदे दरख़्तों से,पा कोई आहट,

आरियों की आमद शाखें नीलाम लगती हैं।

कागज़ी फूलो गुलशन का जमाल कायम,

गंध-पसंद तितलियां  मेहरबान लगती हैं।

उदय वीर सिंह ।

शनिवार, 28 जनवरी 2023

समाचार हो गया....


 





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.......✍️

पन्ना  मेरी जेब का अख़बार हो गया।

दर्द मेरा अपना था समाचार हो गया।

मैंने दर्द में दीआवाज कोई नहीं आया , 

मेरी खुशी से सबका सरोकार हो गया।

खंडहरों ने भी मना किया पनाह देने से

तूफान से तबाह मेरा घर-बार जो गया।

सब लौटआये छोड़कर मुझे जाने वाले,

जब  कामयाब  मेरा कारोबार हो गया।

चले गए बे-मुरौअत मेरा हाथ छोड़कर,

जब मेरे  ऊपर ढेर सारा उधार हो गया।

मैं  छोड़ आया बे-फिक्र बहारों की गली

जब  कांटो  पर  मुझे पूरा ऐतबार गया।

नासमझ था खुली थी जब अपनीआंखें 

बंद कर ली आंखें  समझदार जो गया।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

आजादी जिंदाबाद...


 





.........✍️

लिखना चाहूँ प्रेमगीत कोशिश बेकार जाती है।

हमारी  जज्बातों  की  मारी कलम हार जाती है।

पत्थरों  ने  सजा दी  उसे न जाने किस बात की,

अपनी पूछने  गुस्ताखियां  वह हरिद्वार जाती है।

मंसूख हो जाएगी अर्जी पहले भी कईबार भेजी,

ये जान कर भी उस दहलीज कई बार जाती है।

बिछाती है ओढती है अपनी हमसफ़र मुफलिशी

चाहती अपनाआशियाना  महँगाई मार जाती है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 22 जनवरी 2023

सालार बनता गया...








 ..........✍️

साज़िशों की आग,आदमी लाचार बनता गया।

जब ना रही दीवार झोंका रफ़्तार बनता गया।

ख़ामोश लबों की मजलिस का हस्र हुआ वीर,

तालिबों अदीबों का,गूंगा सालार बनता गया।

दाग़दारों ने मनाया जश्न जबआईना तोड़ा गया,

राग - दरबारी मिलते गए  दरबार बनता गया।

चली जहालत की आंधियां, टूटने लगे उसूल,

जब मूल्य बिकने लगे घर,बाजार बनता गया।

टूटी हमदर्दी की हर कड़ी दर्द की सर्दियां आईं

मसर्रत आयी फासला रिश्तेदार बनता गया।

उदय वीर सिंह।

21।1।23

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

जाल पर्दे में है।


 



..मशाल पर्दे में है..✍️


अंधेरा तब तक है जबतक मशाल पर्दे में है।

ख़ामोशी तबतक है जबतक सवाल पर्दे में है।

सड़कें उदास, सन्नाटों से भरी ,माजरा क्या है,

वीरानगी तबतक है,जबतक जमाल पर्दे में है।

रंगों शबाब महफ़िल का मुकम्मल नहीं हुआ,

जश्न आधा अधूरा है जबतक गुलाल पर्दे में है।

हर जुबां तहरीरो वरक तस्दीक में नज़र आये,

बुलंदियां  ख़्वाब हैं जब तक ख़्याल पर्दे में है।

बहेलिए की मकबूलियत इश्तिहारों से मिली,

दाने तो ऊपर-ऊपर दिख रहे जाल पर्दे में है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

सभागार वहशी जो जाए...


 




........✍️

सभागार वहशी हो ..

क्या  होगा सत्य का जब 

समाचार वहशी हो जाये।

क्या होगा कलम का जब 

अख़बार वहशी हो जाये।

क्या होगा निति व नियोगों 

का जब वो कर्क बनने लगें,

क्या होगा द्रौपदी का जब,

सभागार  वहशी  हो जाये।

क्या होगा मुसाफ़िरों का जो

सिम्त वसूलने लगे खिराज,

क्या  होगा साँसों  का  जब

बयार  वहशी   जो   जाये।

मुखबिर  हो  जाये दहलीज

दे  जब  आंगन  ही  रुसवाई

क्या  होगा  मंगल कंगन का

जब  कटार  वहशी हो जाये।

उदय वीर सिंह

शनिवार, 14 जनवरी 2023

काल -कथा है कहने दो...






 काल-कथा है कहने दो..✍️

सरिता है मत अवरोध बनो

धारा अपनी बहने दो।

हर तट तीरथ की अपनी

काल-कथा है कहने दो।

काल-खंड के भावों को 

व्यक्त किया अनुरागों से,

क्या लिखा है पाती जातक

पढ़ रहा है पढ़ने दो।

जीवन को कारागार नहीं

द्वेष-मुक्त शिक्षालय हो

समता की उर्वर वसुधा में

अभेद वृक्ष को पलने दो।

आडंबर पाखंडों की ध्रुव,

अनुशंसा प्रतिबंधित हो,

क्यों संशय है कुंदन पर 

ताप अनल के जलने दो।

सत्य अनावृत होता हो,

 करतल ध्वनि की गूंज उठे

असत्य,प्रलाप,प्रपंचों को

अग्निशिखा में जलने दो।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 11 जनवरी 2023

नसीब लिखने लगे.....




 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों !


कल तक थे दोस्त ,रक़ीब लिखने लगे।

कलमआयी हाथ तो नसीब लिखने लगे।

अमीरों  की  फेहरिश्त  में नाम जिनका,

सुन मुनादी ख़ैरात की गरीब लिखने लगे

दी हवा सारेआम आगजनी की जिसने,

रहजनों के सालार तहजीब लिखने लगें।

ये दौर भी गिरावट बदला तो खूब बदला

अदीब जांनिसारी के अजीब लिखने लगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 8 जनवरी 2023

चिराग़ों का मिजाज अपना है...


 



🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों !


ख्वाहिश नहीं कोई सूरज  ,चांद होने  की,

दहलीज के चिरागों का मिज़ाज अपना है।

खून  और  आसुओं  का  मुजस्सिम  नहीं,

कायम रहे दस्तार सिर का ताज अपना है।

जरूरत  नहीं  किसी  संगीत वाद्य यंत्रों की,

अलबेली  कोयल  का  सुर साज अपना है।

करते फतह मंजिल मुश्किलों को तार करके,

राहअपनी ही चले उनका अंदाज अपना है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 1 जनवरी 2023

🌷नूतन वर्ष 2023 🌷


 



🌷 नूतन वर्ष 2023 🌷

प्रश्न भी रहे समाधान भी...✍️

ये  देश भी रहे संविधान भी रहे।

प्रश्न  भी  रहे  समाधान भी रहे।

दिल  भी  रहे  अरमान भी  रहे। 

हिन्दू  भी रहे मुसलमान  भी रहे।

बड़ी शिद्दत से इंसानियत के वरक 

रोटी  व  कपड़ा मकान  भी रहे।

हो नमींआंख में शबनमीं हो जमीं,

इंसान भी रहे स्वाभिमान भी रहे।

उदय वीर सिंह🌷

अलविदा 2022


 




अलविदा.... 2022..✍️


किताबों  के  घर हथियार नहीं रखते। 

इंसानियत फले फूले दीवार नहीं रखते।

रुख़सत हुआ जाता है ये पुराना साल,

रवायत है नक़द की उधार नहीं रखते।

कह रहा है सदा अमन की फिक्र करना,

नफ़रत से  कोई  सरोकार नहीं रखते।

जाते हुए साल से बेहतर हो नया साल ,

हो बहारों की आमद खार नही रखते।

समय को उकेरा है समय के खांचों में,

दरबारों कीआस कलमकार नहीं रखते।

उदय वीर सिंह।