शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

आजादी जिंदाबाद...


 





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लिखना चाहूँ प्रेमगीत कोशिश बेकार जाती है।

हमारी  जज्बातों  की  मारी कलम हार जाती है।

पत्थरों  ने  सजा दी  उसे न जाने किस बात की,

अपनी पूछने  गुस्ताखियां  वह हरिद्वार जाती है।

मंसूख हो जाएगी अर्जी पहले भी कईबार भेजी,

ये जान कर भी उस दहलीज कई बार जाती है।

बिछाती है ओढती है अपनी हमसफ़र मुफलिशी

चाहती अपनाआशियाना  महँगाई मार जाती है।

उदय वीर सिंह।

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