.
.......✍️
पन्ना मेरी जेब का अख़बार हो गया।
दर्द मेरा अपना था समाचार हो गया।
मैंने दर्द में दीआवाज कोई नहीं आया ,
मेरी खुशी से सबका सरोकार हो गया।
खंडहरों ने भी मना किया पनाह देने से
तूफान से तबाह मेरा घर-बार जो गया।
सब लौटआये छोड़कर मुझे जाने वाले,
जब कामयाब मेरा कारोबार हो गया।
चले गए बे-मुरौअत मेरा हाथ छोड़कर,
जब मेरे ऊपर ढेर सारा उधार हो गया।
मैं छोड़ आया बे-फिक्र बहारों की गली
जब कांटो पर मुझे पूरा ऐतबार गया।
नासमझ था खुली थी जब अपनीआंखें
बंद कर ली आंखें समझदार जो गया।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें