शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

तेरी -ओट

खुशनशिबी है अपनी हुकुम आ गया ,
गुरु -ग्रन्थ साहब दे घर आ गए/
दीं दुनियां विच जिनको कुछ हासिल न था ,
सर झुका तेरे चरणों में सब पा गए/
अमर ज्योति तेरी जली प्रेम की
 चानढ़ हुआ जग अँधेरे में था /
अपने गुरुओं की बाणी जीवन धरा बनी,
दिग्भ्रमित मन फंसा तेरे-मेरे था /
न छोटा कोई है न ,कोई बड्डा
कोई भला ,कोई मंदा नहीं /
एक इश्वर के सारे बनाये हैं हम,
उसके सिवा कोई सत्ता नहीं/
गुरु,पीर,संतों व् भक्तों की बाणी,
गुरु-ग्रन्थ साहिब  में स्वर पा गए/
ढूंढ़ लेंगे उदय सुन ले मालिक मेरे,
शुक्रिया लख तेरा अपने घर आ गए/
प्यार दी राह रब ने बख्शीश दी
अपने गुरुओं का प्यारा चमन पा गए/

                    उदय वीर सिंह
                        ०१/१०/२०१०

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