पद-चिन्ह बदलता जाता है /
शंशय -हीन,विस्वास भरा मन
विचलित होता जाता है /
पथ विकसित हों ,पग सज्जित हों /
सरसे पवन ,पथिक हर्षित हों /
सुखद साँझ हो ,सुबह उजारी ,
मंगल दिवस ,पुष्प वर्षित हों
विजय- पथ का प्रारब्ध सुखद हो ,
प्रतिमान बदलता जाता है /-----
बहु यत्न हुए बहु सृजन हुए ,
अश्रु-प्रवाह ,तज नयन गए /
सूनी अंक सुना हुआ आँचल
सुने दृग से स्वप्न गए/
क्या चुक हुई ? विचलन सी आई ,
मरू-भूमि में कदम गए ,
पाने को नित बसंत सा जीवन ,
मृग -तृष्णा में झुलस गए /
खोया क्या ?पाया क्या ? हमने ,
सोच हृदय घबराता है /
छोड़ा था अपनों का आँगन ,
कल्पित चमन को पाने को /
चमन-सृजन में दे बलि अपनी ,
रही अतृप्त पछताने को /
बंधन संबल देते पथ में ,
स्व्क्षंद पैर लहराता है /
अपनों का आँचल छूट गया ,
प्यार पगे कर कौन धरे /
ममता का निर्झर ,नित झरता ,
स्नेह की लोरी कौन कहे /
घोर तिमिर अदृश्य डगर ,
सूनापन बड़ जाता है /
भरे नैन रोई भर आँचल ,
पीर हृदय की कौन पढ़े /
पग दूर गए जिनको धोयी ,
लूं चूम चिन्ह, भी नहीं रहे /
तकते नयन ,खुली हुई बाहें ,
आजा --आ अब तो! कौन कहे ?
टूटी डोर जन्मों की बांधी ,
बेआस अंक को कौन गहे ?
आओ ! लौट पुकार सुनूँ ,
जो धूप ,छांव बन जाता है /
देगा कौन आशीष मुझे ,
उदय पूछता जाता है / --
उदय वीर सिंह
२३/१०/२०१०
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