गुरुवार, 11 नवंबर 2010

मीर ना होत फकीर

सम्बेदना  मरी नहीं  ,
जिन्दा है  ,मैने देखा एकला  चलते पथिक को ,
जब उसने उठाया ,कमजोर हांथों से ,
 सड़क पर गिरा ,  पुष्ट- शरीर ,टूटा मनोबल  लड़खड़ाते कदम के स्वामी को  /
पूछा विनम्र -
आप गिर पड़े हैं ! क्या नाम है ?
आवास   किधर श्रीमान  ? 
मैं क्या कर सकता सहायता  आपकी  ?
खून रिसता है ,जख्मी है काया ,फटे  बसन  ,कहते हैं कहानी ,
द्वन्द ,अनैतिकता,अपभ्रंश की ,/
क्यों ले ली है शत्रुता, अपणे आप से ?
आवश्यकता है आपको ,दर्द  निवारक  की,परिजनों  की ,
साहस   की, आचरण की ,संयम की /
कुछ लेते क्यों नहीं इनमें ?
--------
उठी बुझी ऑंखें ऊपर की तरफ ,अंगार की तरह दहकने की कोशिश ,
नाकाम !
दहाड़ने का प्रयास  विफल 
डब्लू,डब्लू.डब्लू.यफ.  सदस्य बनने का प्रयत्न  असफल ,
टूटा स्वर ,लडखडाती जुबान,फिर भी ऐंठन  ,------
क्या लोगे ?अपणे इस श्रम का मोल ?
इसी की तलाश करते हो तुम गिरे लोग  ----------
कोई मिल जाये अभिजात्य ,  ऐंठ लें  मूल्य  /
बोलो मुराद  अपनी   ?
पीने को --वोदका ,शैरी  ,सैन्पेन ,व्हिस्की ,रम ,
खाने को ,- फास्ट- फ़ूड  
भोगने को - अप्सरा 
चलने को - सेडान  ,मर्सिडीज  ,वायुयान ,
क्रेडिट  कार्ड ,
पहनने को -सनील, रेशम  ,
बोलो क्या  पसंद  ? 
पर ,एक बार ,अंतिम बार दूंगा मोल ,  मुझे उठाने का   ,
 है स्वीकार  ?
-----------
नहीं श्रीमान !  अस्वीकार ---
आप  विपन्न हैं, लाचार हैं ,बे-सऊर  हैं ,
नहीं है, आपके   पास  जो चाहिए मुझे  /
रोटी -    पेट भरने को ,
कपडा-    आबरू का आवरण ,
पानी-- ,   प्यास बुझाने को  ,
भोगने को -   स्वस्थ्य ,संयमित जीवन  ,
साहस,आत्मविश्वास  जो दूसरों को बाँट सकूं  !
रहने को विशाल- हृदय , जिसमें समाहित कर सकूं   सबको  /
मुद्रा - हस्तगत कर सकूं   असहाय को तुरंत ,
जो   भूखे पेट ,एक रोटी का सवाल ,
फैलाये हाँथ फिरता है  /
-------           ------
गिरे हैं आप जी !,कितना   गिरेगें   और  ,?
मैं नहीं गिर सकता आपकी तरह  ,/
मैं एक इन्सान   हूँ  / नहीं बेचता इंसानियत  ----------
बे -मोल ,को तोल नहीं सकता  ,
दौलत नहीं  किसी के पास इतनी   ,
जो खरीद सकता /
देख मंज़र  !गिरा कौन ! तज गए  सब, बिन रहबर , अकेला लाचार ,
सूनी डगर !
उदय ,
उठने का प्रयास कर  /-----

                                                              उदय वीर सिंह 
                                                               १०/११/२०१०











3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत आग है लेखनी में ..सच है जिसके पास देने के लिए रोटी नहीं वो विपन्न ही है ...

ZEAL ने कहा…

मैं एक इन्सान हूँ / नहीं बेचता इंसानियत ----------
बे -मोल ,को तोल नहीं सकता ,
दौलत नहीं किसी के पास इतनी ,
जो खरीद सकता ...

Quite inspiring !

.

ZEAL ने कहा…

.

समय बतायेगा ओबामा की यात्रा का सच।

.