हाँथ लोकतंत्र के कमजोर हो गए ---------
जिनके ऊपर थी रखवाली, वे ही चोर हो गए /-------
देश है विमार, उपचार कहीं दूर है ,
नित्य, नव , लग रहीं इसको बीमारियाँ /
घृणा ,द्वेष ,दंभ , का विकार अभी गया नहीं ,
हवाला,व घोटालों की बढ़ी रंगदारियां ,/
अपराधियों के हाँथ, लम्बी डोर हो गए --------
करके हत्या और लूट ,बे-सबूत, निर्दोष हैं ,
कोई ना गवाह ,साक्ष्य उनके खिलाफ हैं /
कौन गुस्ताख़ , होगा उनके विरोध में ,
आयी मौत उनकी या जीवन से उदास हैं /
मिला नहीं न्याय ,रोते भोर हो गए -------------
वेतन-भोगी कर्मियों से आयकर तो काट लिया ,
आय बे-हिसाब उनपर कोई ना लगाम है /
खरीदते और बेचते है देश और प्रदेश को ,
गद्दार, देश-द्रोहियों से देश परेशान है /
अहिंसा के पुजारी , आदमखोर हो गए ---------
धन , और बल ,का प्रताप चहुँ ओर है ,
लाचार, बेबस, जनता का हो रहा शिकार है /
योग्य, विद्वान जन, की होती नहीं पूछ अब ,
चाटुकार अपराधियों की बनती सरकार है /
भ्रस्टाचार रूपी चाँद, के चकोर हो गए ----------
सीलिंग से बचाने हेतु मांगता है न्याय ,
कोई झोपड़ी ,बनाने हेतु भूमि, बिन लाचार है ,/
शिक्षा ,और स्वास्थ्य के अभाव में ये देश है ,
करेगा विकाश कैसे ?, देश ही विमार है !
समता और ममता कठोर हो गए -------
उदय वीर सिंह .
१२/११/२०१०
1 टिप्पणी:
बहुत बढिया
हमारे देश की यही विडम्बना है
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