गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

दुर्बल का सफ़र

दुर्बल ,
अपाहिज ,लाचार ,फैलाये हाँथ ,
दोनों पैरों से हीन ,
मदद करो ! दया करो !भगवान के लिए !
आ रहा घिसटता , देता आवाज  ,रेल के डिब्बों में  /
टिकट साधारण ,
भीड़ का आलम  ,सौचालय भी कम पड़ गये ,
मजबूर  , मजदूर यात्रियों से  ,जो चले  तलाश में सुखी जीवन की  परदेस में ,
दुर्बल चला गया ,आरक्षित डिबे में ,भीड़ से बचने के उपक्रम में ,
क्यों की बीमार था   ,
बाथरूम के पास खड़ा ही तो था !
मैला -कुचैला ,लिए थैला
जिसमें ,एक फटी चादर ,व पैबंद लगी लुंगी थी  ,
जा रहा था नाबालिग बेटे के श्राद्ध में ,
बेटा मजदूर था ,मारा गया घटिया निर्मित उपरगामी पुल के मलबे में  /
आभाव में संस्कार में नहीं पहुंचा ,नहीं देख पाया मरे बेटे का मुंख
ना दे सका अग्नि जिगर के तुकडे की लाश को  /
एक अदद पूंजी बकरी बेंची ,कुछ इंतजाम हुआ भाड़े का  ,
लुगाई ना जा सकी संग ,
दूसरा ना था  कुछ उसके पास बेचने को /
****
टिकट,टिकट ,करता आया   टी. टी ,
डाली नज़र  सहमी  हुई  कृशकाया   पर
माँगा टिकट !
दिया टिकट , कांपते हांथों   से ,
टेढ़ी नज़र,--ये साधारण टिकट ------
तू कैसे आया इस डिब्बे में ?
तेरी मजाल--तेरी माँ की-----तेरी -बहन की----
सौक   नबाबों का ?------
निकाल   पैसे !  बनवा टिकट ! दंड के साथ  /-----
नहीं तो  भेजूंगा जेल   !  मरूँगा बीस गिनूंगा एक   /
सर ! मेरी मज़बूरी यहाँ ले आई  ,पांव रखने को नहीं मिली जगह ,
बीमार हूँ , दमा है मुझे / श्राद्ध में शामिल होने दो बेटे के / -----
यहीं काट लूँगा सफ़र ,गलियारे में  ,कोने में  ,
  ,,पैर पकड़ गिड़-गिडाया  /  तरस नहीं आया ,बाबु जी को /
साले  ! ड्रामा करते हो ?
मैं   जनता हूँ   तुम  लोगों की फितरत !
निकाल पंद्रह सौ ,वर्ना जायेगा जेल  ,
सर मंजूर मुझे ,जो सजा दो ,मालिक हैं आप ,
ठीक है ,पांच सौ दो ,  सीट  दे दूंगा  /-------
बाबू जी ! भूखा हूँ कल से  ,बस  बीस  रुपये बचे हैं ,टिकट के बाद ,
चाहें तो दे दूं   ! जो किराया है दिल्ली की बस का  /
झल्लाया साहब ,बदतमीज !स्लीपर मिलता  बीस में ?
मैं मसखरा लगता हूँ ? पकड़ी गर्दन  ,
चल बाहर   ! इसी वक्त !-------,
जोड़े हाँथ ! बख्स  दो बाबू जी ! अगले स्टेशन  उतर जाऊंगा  /
रहम करो  ! पीछे दुखों की मारी , पगली  सुखना  भी है ,
 अब   ,कोई      नहीं    मेरे   सिवा   उसका   /
पद , प्रतिष्ठा ,  अधिकार का जोश !
ऊपर से रिश्वत  ना मिलने का रोष  ,
  ना देखी   गति ना सोचा परिडाम  ,
दे दिया धक्का ,चलती ट्रेन से /
दुर्बल गिर पड़ा  !
होश आया   तो ,  पाया अस्पताल   में  , पैर- विहीन ,
मजबूर लाचार  /--
करुण- क्रंदन ,वेदना प्रवाहित  ----
बाबू जी  !---
हमको तो मिला--   -दर्द , उपेक्षा ,बेबसी लाचारी ,
गम से मरी  , बीबी का विछोह  ,
अपनी लाश !ढ़ोने को अपने कन्धों पर,
 सदा के लिए   /---
आपको  क्या  मिला   ?----

                                उदय वीर सिंह
                                ०१/१२/२०१०.

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह ...बहुत मार्मिक चित्रण