हम गीत जो गाने वाले थे , बिन गाए बदनाम हुई ,
प्रभात की बेला अंक पसारे, भर पाते की शाम हुई --------
दर्पण मुझे दिखाता है , मेरा प्रतिबिम्ब पराया सा //
किस गह्वर में जा समायी ,जो ज्योति हृदय में पाया था //
विस्मृत सी थी गीत -मञ्जूषा ,वो होठों पर आम हुई ---------
ताल- तरंगें , स्वर को ढूढें , हर साजों से हो आई //
मानस ने पाया पीर- हरण ,अकिंचन पछताई ना कुछ पाई //
देकर नाम अनामों को , अपने तो बे-नाम हुई --------
सिला मिला उपकारों का , दर्शक बन गये रखवाले //
भरे चौक पथ्यर दे मारे , मुझे , अपना कहने वाले //
कन्धा भी, अर्थी ना पाई , जिनके लिए कुर्बान हुई --------
कहते दर्द तुम्हारे मेरे , होठों की हंसी को तार किये //
खून से अपने उपवन सींचा ,एक पुष्प से भी लाचार हुए //
चले गये इस पथ से होकर , अपनों में अनजान हुई --------
क्या संजोना उदय उन्हें , जो सपनों का सामान हुई ------
उदय वीर सिंह
३१/०१/२०११
प्रभात की बेला अंक पसारे, भर पाते की शाम हुई --------
दर्पण मुझे दिखाता है , मेरा प्रतिबिम्ब पराया सा //
किस गह्वर में जा समायी ,जो ज्योति हृदय में पाया था //
विस्मृत सी थी गीत -मञ्जूषा ,वो होठों पर आम हुई ---------
ताल- तरंगें , स्वर को ढूढें , हर साजों से हो आई //
मानस ने पाया पीर- हरण ,अकिंचन पछताई ना कुछ पाई //
देकर नाम अनामों को , अपने तो बे-नाम हुई --------
सिला मिला उपकारों का , दर्शक बन गये रखवाले //
भरे चौक पथ्यर दे मारे , मुझे , अपना कहने वाले //
कन्धा भी, अर्थी ना पाई , जिनके लिए कुर्बान हुई --------
कहते दर्द तुम्हारे मेरे , होठों की हंसी को तार किये //
खून से अपने उपवन सींचा ,एक पुष्प से भी लाचार हुए //
चले गये इस पथ से होकर , अपनों में अनजान हुई --------
क्या संजोना उदय उन्हें , जो सपनों का सामान हुई ------
उदय वीर सिंह
३१/०१/२०११
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