लिपटी चादर में मैनें , विलोका तुम्हें ,
क्या छुपाया है अब तो बता दिजीये ------
राज राह बजाएगा ,चैन मिलना नहीं ,
खुद नकाबों को अपने हटा लीजिये -----
सामर्थ्य है जब तलक साँस है ,
टूटने पर सिकंदर जर्रा बन गया ,
डूबना ही पड़ा अफ्फ्ताब- ए -शहर ,
जख्में शबनम बहा जलजला बन गया ----
क्या है हस्ती तेरी कुछ मुकम्मल नहीं
सिर मुकम्मल के दर नु झका लीजिये -----
मिलती है दुआएं सदा मुफ्त में ,
देने वाले के रस्ते में सजदा करो ,
लिए पैगाम -ए-उल्फत फिरे हर गली ,
उस मालिक के घर का पता पूछिये ------
उदय वीर सिंह
क्या छुपाया है अब तो बता दिजीये ------
राज राह बजाएगा ,चैन मिलना नहीं ,
खुद नकाबों को अपने हटा लीजिये -----
सामर्थ्य है जब तलक साँस है ,
टूटने पर सिकंदर जर्रा बन गया ,
डूबना ही पड़ा अफ्फ्ताब- ए -शहर ,
जख्में शबनम बहा जलजला बन गया ----
क्या है हस्ती तेरी कुछ मुकम्मल नहीं
सिर मुकम्मल के दर नु झका लीजिये -----
मिलती है दुआएं सदा मुफ्त में ,
देने वाले के रस्ते में सजदा करो ,
लिए पैगाम -ए-उल्फत फिरे हर गली ,
उस मालिक के घर का पता पूछिये ------
उदय वीर सिंह
३/०२/२०११ .
1 टिप्पणी:
दिल से पूछा तेरे , साथ कितना सफ़र ?
मुस्कराया कहा बस कदम दो कदम है
वाह। बहुत खुब।
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