सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

**आया ले नेह बसंत **

आगमन  से  तेरे मन  बसंती   हुआ ,
आँचल  हुआ   मखमली - मखमली   -----
--
                  नेह   छलका  अनंगी  ,घटा छा  गयी ,
                  इतना बरसो की, भीगे गली हर गली -----
--
                 आगमन  में क्षितिज रस भरा हो गया ,
                 गले  मिल  रही  है , कली  हर    कली ---- 
--
पोरी गन्ने की  मद  में  , निखरने    लगी  ,
गोरी  फूलों  से , आँचल  को   भरने  लगी   / 
नैन   तीखे   गुलाबों   से ,  कहने    लगे ,  
आजा सज लो ,सजा दो कामिनी की गली   / 
-- 
               अब  बसंती हुआ  मन  बहक जाने दो   ,
               मदमाते    पादप ,   पवन     मनचली  ----
-- 
सज रहे बाग -वन  अब पहन नव- वसन  ,
जैसे डेटिंग पर ,माही   के   संग  जाना   है  /
छेडने अब लगे ,गीत गीत  गाकर  मधुप  ,
सेज फूलों की  , प्रियतम  को  नजराना  है   /
-- 
                सजती धानी चुनर में , बिहंस   माधुरी 
                कश्यपी    ने सजाया ,शुषमा   की लली-----
-- 
सिर से नख तक सजा ,नाज़  हर अंग में  ,
कटि ,कमर ,मुख चपल ,प्रीत भर  ले गए   /
स्वर्ग -  सौन्दर्य  सूना -  सूना  हो   गया  , 
बसंत बांहों में भर के , सब  घर  ले  गए   / 
-- 
                जड़ चेतन आनंदित ,नर्तन कर रहा  ,
                गीत गाओ  उदय ,रसभरी - रसभरी  -------
                 -----------******---------------

                                              उदय वीर सिंह  .
                                              २१/०२/२०११ 

9 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत है\ बसंती फुहार सा। बधाई।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर वासंती गीत..भाव, लय और शब्दों का बहुत सुन्दर संयोजन...बधाई!

girish pankaj ने कहा…

waah, kamal ki rachana hai...achchha laga parh kar. aastha se bhari rachana,.shubhkamanaye.

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर
---------

ZEAL ने कहा…

.


पोरी गन्ने की मद में , निखरने लगी ,
गोरी फूलों से , आँचल को भरने लगी
नैन तीखे गुलाबों से , कहने लगे ,
आजा सज लो ,सजा दो कामिनी की गली ....

बहुत ही सुन्दर भाव और शब्द चयन ।

.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय उदय वीर सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

क्या बात है जी ! क्या बात है !
बहुत ही सो'णा , वदिया , चंगा गीत रचा है आपने
सज रहे बाग -वन अब पहन नव- वसन ,
जैसे डेटिंग पर ,माही के संग जाना है
छेडने अब लगे , गीत गाकर मधुप ,
सेज फूलों की , प्रियतम को नजराना है

सजती धानी चुनर में , बिहंस माधुरी
कश्यपी ने सजाया सुषमा की लली…


आपका गीत पढ़ कर मन मुग्ध हो गया , सचमुच ! बहुत बहुत बधाई !

♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीय उदय वीर सिंह जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

क्या बात है जी ! क्या बात है !
बहुत ही सो'णा , वदिया , चंगा गीत रचा है आपने
सज रहे बाग -वन अब पहन नव- वसन ,
जैसे डेटिंग पर ,माही के संग जाना है
छेडने अब लगे , गीत गाकर मधुप ,
सेज फूलों की , प्रियतम को नजराना है

सजती धानी चुनर में , बिहंस माधुरी
कश्यपी ने सजाया सुषमा की लली…


आपका गीत पढ़ कर मन मुग्ध हो गया , सचमुच ! बहुत बहुत बधाई !

♥ प्यारो न्यारो ये बसंत है !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत गीत ..

Satish Saxena ने कहा…

बेहतरीन शब्द सामर्थ्य पायी है आपने ....शुभकामनायें !!