गम भुलाने की खातिर ,मधुशाला नहीं ,
मंदिरों की तरफ भी नजर कीजिये ****
छुट जाये आशाओं की जब हर डगर ,
फकीरों की गलियों में घर लीजिये ****
खुबसूरत हृदय में मुहब्बत रहे
गम सिमट जायेंगे ,हौसला चाहिए ---
हर रस्ते में है , ढूंढ़ लो , तुम ख़ुशी ,
चाहिए क्या तुम्हें , फैसला चाहिए ----
प्यार खुद से करो , जर्रा - जर्रा हँसे ,
हँसने वालों को ,हँसने का स्वर दीजिये ****
सौगात है जी कदम हर कदम ,
कुछ ठोकर न रस्ते की पहचान हैं ---
कुछ काँटों से मधुवन कंटीला नहीं ,
आंशुओं के सृजन में भी मुस्कान है -----
राह -ए- मंजिल में , हरदम धोखा ही नहीं ,
उपरवाले पर कुछ तो यकीं कीजिये ****
टूट जाना , बिखरना , मुनासिब नहीं ,
आँधियों के सहर से गुजर लीजिये ****
डूबना ही पड़े दिल से डुबो उदय ,
बहती गंगा , संतों की उतर लीजिये ****
गम भुलाने के खातिर ,मधुशाला नहीं ------
उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
छुट जाये आशाओं की जब हर डगर ,
फकीरों की गलियों में घर लीजिये ****
बहुत सार्थक और प्रेरक रचना..बहुत भावपूर्ण और सुन्दर...आभार .
राह-ए- मंजिल में, हरदम धोखा ही नहीं ,
उपरवाले पर कुछ तो यकीं कीजिये
टूट जाना , बिखरना , मुनासिब नहीं ,
आँधियों के सहर से गुजर लीजिये
डूबना ही पड़े दिल से डुबो उदय ,
बहती गंगा ,संतों की उतर लीजिये.....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण काव्य रचना के लिए हार्दिक बधाई।
कमाल का लिखते हो, सीधा मन छूने में कामयाब ! शुभकामनायें आपको !!
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