[ मूल्यों के गिरते हुए इस दौर में , लिखी गयी इस
नज़्म से यदि किसी को ठेस पहुंचती हो ,तो हम क्षमा प्रार्थी
हैं / मेरा आशय यह नहीं है / मेरे द्वारा महसूस ,देखी , सांझी
संवेदना किसी यथार्थ का प्रतिनिधित्व नहीं करती / जीवन के
अवशान में मनुष्य उतना ही लाचार & तनहा होता है , जितना
शैशव - काल में / आवश्यकता है , संबल की प्यार की संवेदना की --- -]
क्या लिख दिया रब ने, मेरी मुकद्दर ,
ढलने लगी शाम उजारा नहीं है ---
पतवार बन हमने कश्ती उबारी,
आज भंवर में पड़ा हूँ किनारा नहीं है --
खोयी ख़ुशी जिनकी खुशियों के खातिर ,
आज तनहा खड़े हैं सहारा नहीं है --
गमे - जिंदगी तेरा अहसान मुझ पर ,
गले मिल रही है , सकूँ मिल रहा है /
चले छोड़ दामन ,अपना कहने वाले ,
अब फरेबों में जीना गवारा नहीं है --
वे समझने लगे मेरी गैरत मरी है ,
समय के मुताबिक , मुकम्मल नहीं हूँ /
सफ़र आखिरी है , है बस दुआएं ,
दामन में कोई सितारा नहीं है ---
दे न सके जो दो बोल उल्फतों के ,
क्या बन सकेंगे कदम रहबरी के ?
फिर भी सलामत खुदा उनको रखना ,
संस्कारों ने हमको बिसारा नहीं है ----
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आवाज देना , फिर भी गर्दिशी में ,
उदय दिल हमारा , तुम्हारा नही है --
उदय वीर सिंह .
२०/०३/२०११
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नज़्म कहां है?
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