** दुःख होता है जब हम ,अपना आत्म- निरीक्षण नहीं करते /आज हम कहाँ हैं ? क्यों हैं ? प्रश्न करते हैं तो क्या पाते है ? वेदना ,निर्भरता ,असहायता ,कितना सक्षम हो पाए हैं हम किसी भी क्षेत्र में , विश्व पटल पर, विश्व गुरु बनना है तो ,अमर भारत के ,निर्विवाद सपूतों
भारत को स्वस्थ बनना होगा ,करना होगा त्याग , संकीर्णता का ,मोह का ,स्वार्थ का पक्षपात का अवगुणों का ---]
शरीर में सूजन इतनी ,
मुश्किल से मिली नाड़ी
परीक्षण करते बैद्द्य जी ने कहा --
हालत बेकाबू हैं /
गहन परीक्षण ,चिकित्सा की आवश्यकता है ,
अंग , अवयव , निष्क्रिय हो रहे हैं .....
परीक्षण - परिणाम देख ,चिकित्सक ,अभिभावक मंडल ,
हैरान ! विवरण कुछ इस तरह ----
कृषि -क्षेत्र ,लकवा ग्रस्त हो गया है /
परजीवियों का निवास-स्थल ,
कीट, पतंगों का चारागाह,
डंकल का प्रभाव स्थायी हो गया है /
खेत फसल खाने लगे हैं
किसान आत्महत्या को विकल्प बनाने लगे हैं ,
आर्थिक क्षेत्र --कैंसर के प्रभाव में है --
मांग- आपूर्ति में महान अंतर है ,
आयात - निर्यात में सामंजस्य नहीं ,
विदेशी दबाव निरंतर है ,
हाथ है काम नहीं ,
श्रम का दाम नहीं ,सम्मान नहीं ,
विकास दौर में ,उत्पादक के बजाय,उपभोक्ता हैं ,
अविष्कार ,खोजों से बैर है ,
निर्यात कर रहे हैं अपनी मेधा ,
यहाँ अपना गेहूं ,अपना धान नहीं /
सामाजिक -क्षेत्र एड्स से पीड़ित है -----
रग -रग में समाहीत ,
सींच रहे हैं -
बट -बृक्ष , आस्था का ,रुढियों का , परंपरा का ,
सिमटती छाँव ,
संवेदना ,मृतप्राय ,
चेतना कोमा में /
सर्व -श्रेष्ठता की सुखानुभूति में
बन गए , दिवा-स्वप्न के साजन ,
बिखर गयी ,सहृदयता ,सौहार्द ,निष्ठा /
शिक्षा का क्षेत्र - विकलांगता में है ----
* अभिनेता, आदर्श ,चल-चित्र ,शिक्षक की भूमिका में ,
शिक्षक मूक ,मजबूर ,
व्यवसाय बन गयी शिक्षा ,
शिक्षालय, शमशान ,
पुस्तकों के वाचक ,नहीं मिलते ,
रचनाओं के प्रकाशक नहीं मिलते ,
बढ़ रही दूरी , अनिच्छा ,अन्व्वेषण से नवीनता से ,
खोजते हैं ---
कालिदास ,कबीर ,टैगोर ,पेमचंद, जयशंकर
ग़ालिब, मीर ,
नहीं मिलते /
रक्त संक्रमित हो गया है - भ्रस्टाचार से ,
मांसपेशियां -सियासत के वायरस से,
निदान वांछित है ,अस्तित्व लिए ,
संजीवनी चाहिए !
धन्वन्तरी की प्रतीक्षा है ,
स्वस्थ भारत देखने की इच्छा है ,
हम छोड़ नहीं सकते ,
बीमार अपने देश को ,
आओ करें प्रयास .
, निश्छल, निर्मल,
मन के
साथ .......
उदय वीर सिंह
२०/०४/२०११
अपनी जाति ,धर्म ,संप्रदाय ,भाषा क्षेत्रवाद
का विकास तीब्र से तिब्रतम है ,
छद्म - आत्मीयता ,द्वेष पाखंड ,रग -रग में समाहीत ,
सींच रहे हैं -
बट -बृक्ष , आस्था का ,रुढियों का , परंपरा का ,
सिमटती छाँव ,
संवेदना ,मृतप्राय ,
चेतना कोमा में /
सर्व -श्रेष्ठता की सुखानुभूति में
बन गए , दिवा-स्वप्न के साजन ,
बिखर गयी ,सहृदयता ,सौहार्द ,निष्ठा /
शिक्षा का क्षेत्र - विकलांगता में है ----
* अभिनेता, आदर्श ,चल-चित्र ,शिक्षक की भूमिका में ,
शिक्षक मूक ,मजबूर ,
व्यवसाय बन गयी शिक्षा ,
शिक्षालय, शमशान ,
पुस्तकों के वाचक ,नहीं मिलते ,
रचनाओं के प्रकाशक नहीं मिलते ,
बढ़ रही दूरी , अनिच्छा ,अन्व्वेषण से नवीनता से ,
खोजते हैं ---
कालिदास ,कबीर ,टैगोर ,पेमचंद, जयशंकर
ग़ालिब, मीर ,
नहीं मिलते /
रक्त संक्रमित हो गया है - भ्रस्टाचार से ,
मांसपेशियां -सियासत के वायरस से,
निदान वांछित है ,अस्तित्व लिए ,
संजीवनी चाहिए !
धन्वन्तरी की प्रतीक्षा है ,
स्वस्थ भारत देखने की इच्छा है ,
हम छोड़ नहीं सकते ,
बीमार अपने देश को ,
आओ करें प्रयास .
, निश्छल, निर्मल,
मन के
साथ .......
उदय वीर सिंह
२०/०४/२०११
12 टिप्पणियां:
वाह! नाडी थामते ही समस्त रोग परीक्षण कर डाला आपके अनुभवी वैद्य जी ने .
आजकल तो रोगों का परीक्षण कराना ही अति दुष्कर होता जा रहा है.प्रथम तो परीक्षण प्रयोगशाला ही नहीं,दूसरे रोग परीक्षण के तरीके भी उलझे हुए.फिर महंगाई.लेकिन, आपने तोवैद्य जी से नाडी पकडवा कर ही फ्री में सारी परीक्षण आख्या प्रस्तुत कर दी है.और साथ में रोग का सुन्दर निदान भी दे दिया है
"आओ करें प्रयास निश्छल निर्मल मन के साथ"
मेरे ब्लॉग पर भी आईये ना !
रक्त संक्रमित हो गया है-भ्रस्टाचार से ,
मांसपेशियां -सियासत के वायरस से,
निदान वांछित है ,अस्तित्व लिए ,
संजीवनी चाहिए !
धन्वन्तरी की प्रतीक्षा है ,
स्वस्थ भारत देखने की ईक्षा है ,
हम छोड़ नहीं सकते
बीमार अपने देश को ,
आओ करें प्रयास .
, निश्छल ,निर्मल,
मन के
साथ .......
वाह उदय जी ...क्या बात है ! एक बेहद ही अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत है ये रचना। निश्चय ही रक्त संक्रमित है। इससे बीमार नहीं छोड़ा जा सकता। देश के कर्णधारों (धन्वंतरी ) को बचाना ही होगा देश ko इस संक्रमण से।
.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बीमार व्यवस्था का प्रभावी चित्रण करती इस कविता के लिए हार्दिक बधाई...
देश की सारी बीमारियाँ गिना दीं ...धनवंतरी भी विशेष चाहिए ..
सिमटती छाँव ,
संवेदना ,मृतप्राय ,
चेतना कोमा में /
सर्व -श्रेष्ठता की सुखानुभूति में
बन गए , दिवा-स्वप्न के साजन ,
बिखर गयी ,सहृदयता ,सौहार्द ,निष्ठा /
बहुत सही कहा आपने ...बेहतरीन लेखन ...शुक्रिया आपका ..यहाँ तक ले आने का
हम छोड़ नहीं सकते
बीमार अपने देश को ,
आओ करें प्रयास .
, निश्छल ,निर्मल,
मन के
साथ .......
अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत है ये रचना।
अनूठ अंदाज में सशक्त अभिव्यक्ति।
अनूठे
टंकण त्रुटी पर ध्यान आया...इस पोस्ट में भी कुछ दिख रही हैं कृपया सुधार लें....
परीक्षण,निरीक्षण, हाथ हैं,दूरी,अन्वेषण,भष्टाचार,इच्छा.....
nice poem
रक्त संक्रमित हो गया है ....
बहुत प्यारी रचना... हम सबको जगाने का प्रयास करती !
आभार भाई जी !
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