मंगलवार, 31 मई 2011

**भाग्य- विधाता **

रचे   विरंची   के   भावों   का 
   मै  कैसे      प्रतिकार     लिखूं  ..
     अपराध  जो हमसे  हुआ  नहीं 
       सजा ,  कैसे    स्वीकार    लिखूं ..

.शापित  चेहरे  अभिशप्त  स्नेह ,
    शोक   गीत   का   मंच    मिला ,
     संवेदन - सून्य , निर्वात    वलय ,
      बिखरे    जीवन    का   अंक   मिला  ....

भाषा- हीन  ,कलम  कैसी  ?
   कैसे  घृणा   को प्यार   लिखूं ....

 भूखा  सोना    भाग्य    अगर
   ये    देश    हमारा    भूखा    है ,
     जन - जन  में  छाई  शोक  लहर ,
       कैसा      प्रारब्ध        अनूठा     है  ....

गूंजे  विरुदावली , जयचंदों  की ,
      कैसे    मैं    आभार       लिखूं .....

भय , भूख , और  दैन्य , याचना ,
    इस    जीवन    के    नगीना   हैं ,
      वस्त्र - हीन   ,बेबस  ,    लाचारी,
       क्या  भाग्य ?  इसी    में   जीना  है ?

 भारत  का  भाग्य  लिखा ऐसा ?
     कैसे     मैं      उपकार       लिखूं ....

अड़ियल      नाविक ,  दिशाहीन
    नाव    भंवर     में    डूब    रही
      अनुचर   मद - पथ  ,दिवास्वप्न  ,
        मरुधर    में     गंगा     खेल   रही  ,...

कुसुम   बेल   हांथों   में  साजे ,
    कैसे    मैं     पतवार       लिखूं  --

 चाँद   वही    तारे    भी    वही .
     सुंदर    प्रकृति    की  गोंद वही .
       सूर्य   वही  ,  सागर    भी   वही
         अमृत    गंगा    की    धार   वही ..

पर  नहीं  रहा  सम - भाव   वही
    कैसे  विष- रस,  को रस- धार लिखूं ....

                            उदय  वीर   सिंह  
                                 ३०/०५/२०११   





7 टिप्‍पणियां:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

भाषा-हिन् ,कलम कैसी ?
कैसे घृणा को प्यार लिखूं ....
बहुत खूब .......आज के वक़्त में किसी का सत्य लिखना बहुत कठिन है...

Rakesh Kumar ने कहा…

भूखा सोना भाग्य अगर
ये देश हमारा भूखा है ,
जन -जन में छाई शोक लहर ,
कैसा प्रारब्ध अनूठा है ....

कमाल के भाव उदय कर देतें हैं आप 'उदय जी'

मेरे ब्लॉग पर आपक इंतजार है.

रचना दीक्षित ने कहा…

चाँद वही तारे भी वही .
सुंदर प्रकृति की गोंद वही .
सूर्य वही , सागर भी वही
अमृत गंगा की धार वही ..

पर नहीं रहा सम - भाव वही
कैसे विष- रस, को रस- धार लिखूं ....

बहुत सुंदर गीत. आभार.

Sunil Kumar ने कहा…

शापित चेहरे अभिशप्त स्नेह शोक गीत का मंच मिला ,
संवेदन - सून्य , निर्वात वलय ,
बिखरे जीवन का अंक मिला
इन पंक्तियों को पढ़ कर क्या लिखूं , बहुत सुंदर रचना बधाई स्वीकार करें ....

vandana gupta ने कहा…

सत्य उदघाटित कर दिया।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

bahut hee sundar vichar .. sach in jhoot bolne valoN kee duniya me aapne sach ke bhaav bharte huve aik sasahkt rachnaa likhi uday ji... Badhai

aap mere blog Amritras me swagat hai..

Smart Indian ने कहा…

सामयिक रचना!