मिटा दो गरीबी अशिक्षा बीमारी ,
भय , भूख शंशय ईर्ष्या लाचारी
दिलों में शराफत की गंगा बहा दोखुदा मान लेंगे ----
रावन कोई जन्म लेने न पाए ,
दुशासन कोई आबरू से न खेले ,
पैदा न हो कंस , निर्लज्ज मामा ,
पितामह कोई अपने होठों को सिले-----
एकलव्य को दुर्वचन से बचा लो ---
खुदा मान लेंगे ----
उजाले में ला दो काली कमाई ,
खुद्दरियों को मिटाया हुआ है ,
पाखंड ,छल ,और फिरका- परस्ती
झूठे अहम् का घर बनाया हुआ है ,
अपने - पराये की दूरी मिटा दो ---
खुदा मान लेंगे ----
काशी और काबा , तिजारत नहीं हो
अमन -ए- वतन में शरारत नहीं हो ,
एक गुलशन में खिलते अनेको सुमन हैं ,
इसे तोड़ने की इजाजत नहीं हो ---
उठे हाँथ कोई , हस्ती मिटा दो ----
खुदा मान लेंगे ---
नफ़रत हृदय की दफ़न कर सकोगे ,
जन्नत भी चाहे , पनाहों में आना
हैवानियत का जनाजा उठा दो ,
परियां भी चाहें यहाँ घर बसाना --
जहालत का पर्दा नजर से उठा दो ---
खुदा मान लेंगे ---
हंसी हर लबों पर ,हर घरों में उजाला ,
दया हर हृदय में , मुहब्बत का प्याला ,
मासूम को दूध , गोरी को आँचल ,
हर हाँथ को काम , न हो , बे - निवाला --
टूटे भरोसे को फिर से बना लो ---
खुदा मान लेंगे ---
कश्मीर तेरा , कन्याकुमारी ,
आसाम तेरा , मरुधर तुम्हारा ,
गन्दी नजर क्यों ? हर जर्रे के वारिस ,
हर बेटी तुम्हारी , हर बेटा तुम्हारा ,
उदय हम-कदम , हम-वतन को रला दो --
खुदा मान लेंगे ----
कहीं रह न जाये ,उदासी का मंजर,
सपनों का भारत , अपना बना लो --
* खुदा मान लेंगे *
उदय वीर सिंह .
१२.०६.२०११.
9 टिप्पणियां:
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति!
बहुत ही भावुक रचना..... हार्दिक बधाई।
कशी और काबा ,तिजारत नहीं हो
अमन -ए- वतन में शरारतनहीं हो ,
एक गुलशन में खिलते अनेको सुमन हैं ,
इसे तोड़ने की इजाजत नहीं हो
बहुत अच्छी रचना...
प्रभावी अभिव्यक्ति .....
भाई उदयवीर जी सत श्री अकाल /नमस्कार बहुत व्यस्तता चल रही है |इसलिए समय नहीं दे पा रहा हूँ |जुलाई से नियमित हो सकूंगा |आप सभी का प्यार बना रहे यही कामना है |अच्छी कविता बधाई
ओजपूर्ण और सार्थक कविता... विराट भाव लिए है यह कविता...
इसीलिए तो मैं खुदा नहीं मानता हूँ ... क्यूंकि ये सब हो ही नहीं सकता है ... बेहतरीन रचना !
sunder parikalpana....
मिटा दो गरीबी अशिक्षा बीमारी ,
भय , भूख शंशय ईर्ष्या लाचारी
दिलों में शराफत की गंगा बहा दो
खुदा मान लेंगे ---
Gahan Abhivykti.... Bahut Sunder
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