आँगन में उगे बबूल, कह सुन्दर सुन्दर
चढ़ खिलने लगे हैं शूल ,वन सुन्दर सुन्दर --
भरी हुयी वादी फूलों से ,
रिक्त हुयी, अब कांटें हैं
कर सकते निर्यात फसल ,
इतनी बबूल की काटे हैं ,
धान , कणक घाटे की खेती करते हैं कुबूल ,
जन, सुन्दर सुन्दर ....
बिंधते फूल , शूल संग ऐसे ,
नख से शिख तक जार जार,
स्रावित रुधिर,तन का हर कोना ,
हिले की छाती आर - पार ,
सृजन,शौर्य,सौंदर्य,विसारा,यह स्वप्न नहीं स्थूल
मन , सुन्दर सुन्दर .../
बिंधते फूल , शूल संग ऐसे ,
नख से शिख तक जार जार,
स्रावित रुधिर,तन का हर कोना ,
हिले की छाती आर - पार ,
सृजन,शौर्य,सौंदर्य,विसारा,यह स्वप्न नहीं स्थूल
मन , सुन्दर सुन्दर .../
आयातित कांटे क्या कम थे ,
कंटक क्रांति को रच बैठे ,
बोओगे कांटे , खाओगे क्या ,
अंक विनास के जा बैठे ,
तीज त्यौहार , हार में कांटे ,,गायब हैं तो फूल,
लिख , सुन्दर सुन्दर ....
इस अखंड देश में काँटों को ,
सींचो मत , कंटक भ्राता,
कई फाड़ के जख्म गहरे हैं ,
जिन्दा हैं, शोक गीत क्यों गाता ,
जयचंद की भाषा न भूले,तुम्हें ये देश जायेगा भूल ,
हे सुन्दर सुन्दर ......
कंटक आभूषण न होते , न होते हैं फूल ,
अथ ! सुन्दर सुन्दर .....
उदय वीर सिंह
कंटक क्रांति को रच बैठे ,
बोओगे कांटे , खाओगे क्या ,
अंक विनास के जा बैठे ,
तीज त्यौहार , हार में कांटे ,,गायब हैं तो फूल,
लिख , सुन्दर सुन्दर ....
इस अखंड देश में काँटों को ,
सींचो मत , कंटक भ्राता,
कई फाड़ के जख्म गहरे हैं ,
जिन्दा हैं, शोक गीत क्यों गाता ,
जयचंद की भाषा न भूले,तुम्हें ये देश जायेगा भूल ,
हे सुन्दर सुन्दर ......
कंटक आभूषण न होते , न होते हैं फूल ,
अथ ! सुन्दर सुन्दर .....
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना ! आपकी शब्द सामर्थ्य को सलाम भाई जी !
खुबसूरत शब्दों का चयन.....
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
शूल को लेकर इतनी सुंदर रचना रच डाली । बस सुंदर सुंदर ।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
alag kism ki.......achchi lagi.
भरी हुयी वादी फूलों से ,
रिक्त हुयी, अब कांटें हैं
कर सकते निर्यात फसल ,
इतनी बबूल की काटे हैं ,
सुन्दर रचना...
सुन्दर सन्देश देती रचना है ... बधाई इस लाजवाब रचना पे ..
आपकी मर्मस्पर्शी भावनाओं और लेखन कौशल दोनों को सादर नमन. संवेदना प्रखर और उद्गार उससे भी प्रबल. बधाई स्वीकार करें.
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