खुदा की राह में , खुद नहीं चलते ,
वफ़ा की राह में दिए नहीं जलते-
मेरे गुनाह से पर्दा , जो न उठ पाए ,
तो मतलब ये नहीं हम गुनाह नहीं करते-
पैमाना-ए-इश्क में ,इतना रस्क भर गया ,
ढलने लगी है शाम ,पैमाने नहीं ढलते-
पेश करते हैं गुलाबों को, गाफिल दिल से ,
कभी साथ लिए वो , दिल नहीं चलते -
सुनाते हैं महफ़िलों में,जो गवारा नहीं उन्हें ,
दिल की अपनी बात जुबान से नहीं कहते -
खैरात है रब की उदय ,ईमान ले जाओ ,
मकान -ए- दिल में , दरवाजे नहीं लगते-
रोशन रहा है दर , फकीरों की शान से ,
मज़ार- ए - हुक्मरान ,रोशन नहीं होते -
उदय वीर सिंह
24 /12 /2011
मेरे गुनाह से पर्दा , जो न उठ पाए ,
तो मतलब ये नहीं हम गुनाह नहीं करते-
पैमाना-ए-इश्क में ,इतना रस्क भर गया ,
ढलने लगी है शाम ,पैमाने नहीं ढलते-
पेश करते हैं गुलाबों को, गाफिल दिल से ,
कभी साथ लिए वो , दिल नहीं चलते -
सुनाते हैं महफ़िलों में,जो गवारा नहीं उन्हें ,
दिल की अपनी बात जुबान से नहीं कहते -
खैरात है रब की उदय ,ईमान ले जाओ ,
मकान -ए- दिल में , दरवाजे नहीं लगते-
रोशन रहा है दर , फकीरों की शान से ,
मज़ार- ए - हुक्मरान ,रोशन नहीं होते -
उदय वीर सिंह
24 /12 /2011
8 टिप्पणियां:
मेरे गुनाह से पर्दा , जो न उठा पाए ,
तो मतलब ये नहीं हम गुनाह नहीं करते-
नमस्कार,
यदि उपरोक्त पकती में "उठा पाए" की जगह उठ पाए अधिक सार्थक है और रचना के गाम्भीर्य को कई गुणित बाधा देता है. पूरी कविता प्रभावशाली और मनन-मंथन की प्रेरणा देती है. बधाई हमेधा की तरह एक और खूबसूरत प्रस्तुति के लिए.
मेरे गुनाह से पर्दा , जो न उठा पाए ,
तो मतलब ये नहीं हम गुनाह नहीं करते-
नमस्कार,
यदि उपरोक्त पकती में "उठा पाए" की जगह उठ पाए अधिक सार्थक है और रचना के गाम्भीर्य को कई गुणित बाधा देता है. पूरी कविता प्रभावशाली और मनन-मंथन की प्रेरणा देती है. बधाई हमेधा की तरह एक और खूबसूरत प्रस्तुति के लिए.
दिखायी पड़ता नहीं, दिखाता सब कुछ है..
आदरणीय डॉ . साहब सृजन परिमार्जन में सहयोग अविस्मरनीय रहेगा ,हृदय की गहराईयों से आपका धन्यवाद /
आदरणीय डॉ . साहब सृजन परिमार्जन में सहयोग अविस्मरनीय रहेगा ,हृदय की गहराईयों से आपका धन्यवाद /
उदय जी,..आपके पोस्ट पर पहली बार आया, आना सार्थक रहा प्रभावशाली सार्थक रचना के लिए
बहुत२ बधाई,....बेहतरीन पोस्ट....
मेरे नए पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
पैमाना-ए-इश्क में ,इतना रस्क भर गया ,
ढलने लगी है शाम ,पैमाने नहीं ढलते-
पेश करते हैं गुलाबों को, गाफिल दिल से ,
कभी साथ लिए वो , दिल नहीं चलते -
bahut sundar rachana . hr ak sher prabhavshali hai... bahut bahut abhar prachhann ji .
मेरे गुनाह से पर्दा, जो न उठ पाए ,
तो मतलब ये नहीं हम गुनाह नहीं करते-
सच में...बहुत सच्ची बात कही है आपने उदयजी.
आपकी हर प्रस्तुति दिल को छू लेती है.
आभार.
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