मैं अपने,
स्वप्नों की शहादत
नहीं चाहता ...
देना चाहता हूँ आकार..
देखना चाहता हूँ ,
सुन्य ,असीम ,आशा- निराशा ,
प्यार, घृणा ,
धूल-धूसरित ,महकता ,
सानिध्य ! किसी अप्सरा का नहीं
जन-मानस का ,
अंतिम इकाई का ,
जो कहीं दूर ,
सूनी आँखों से देखता ,
प्रतीक्षा में है ..
मद बसंत ,पतझर
शरद की रवानी ,राजनितिक तापमान ,
टूटते -जुड़ते समझौते ,
बनता बिगड़ता आसमान ,
मिस्टर इंडिया की हसरत ,
रामराज जैसा हिंदुस्तान
स्वप्न हैं ,स्वप्न में हैं ,
जिन्हें खोना
नहीं
चाहता
बजते नक्कारों में.........
उदय वीर सिंह
स्वप्नों की शहादत
नहीं चाहता ...
देना चाहता हूँ आकार..
देखना चाहता हूँ ,
सुन्य ,असीम ,आशा- निराशा ,
प्यार, घृणा ,
धूल-धूसरित ,महकता ,
सानिध्य ! किसी अप्सरा का नहीं
जन-मानस का ,
अंतिम इकाई का ,
जो कहीं दूर ,
सूनी आँखों से देखता ,
प्रतीक्षा में है ..
मद बसंत ,पतझर
शरद की रवानी ,राजनितिक तापमान ,
टूटते -जुड़ते समझौते ,
बनता बिगड़ता आसमान ,
मिस्टर इंडिया की हसरत ,
रामराज जैसा हिंदुस्तान
स्वप्न हैं ,स्वप्न में हैं ,
जिन्हें खोना
नहीं
चाहता
बजते नक्कारों में.........
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
सुन्दर शब्दावली, सुन्दर अभिव्यक्ति.
कृपया मेरी नवीन प्रस्तुतियों पर पधारने का निमंत्रण स्वीकार करें.
एक बढ़िया अतुकान्त रचना पढ़वाने के लिए आभार!
सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
http://terahsatrah.blogspot.com
आपकी सदिच्छा अवश्य पूरी होगी भाई जी !
शुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर लिखा आपने.
जीवन से सभी रंगों के समावेश से ....ये सपने सजते है
sundar shabdo se sjaya hai kavita ko ...umda lekhan
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
सच कहा है ... उन्नत भारत का सपना कोई भी नहीं खोना चाहता इसलिए उठना होगा ...
स्वप्न जब तक जीवित है... सम्भावना भी सांस ले रही है!
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