पावन गुरु पर्व की समस्त देशवासियों को लख-लख बधाईयाँ ,प्यार अभिनन्दन !
[ संक्षिप्त अनुशीलन ]
शिख -धर्म के दसवें गुरु का आगमन मूलतः ऐसी वेला में हुआ जब - जोर, जुल्म ,पीड़ा से कराहती मानवता ,असहनीय वेदना, अंतहीन दुःख ,बेबसी, लाचारी में आबद्ध ,उद्धार की प्रतीक्षा में, अंतहीन अंधेरोंमें डूबी करुण पुकार के सिवा कुछ नहीं था उसके लबों पर ,आतंकी अत्याचारी धन ,धर्म, धरती, अस्मिता पर, निर्लज्जता ,निर्ममता से आघात कर रहे थे , निरंतर जनेऊ का संग्रहण ,वजूद ही मिटाने का उपक्रम , बलात धर्मान्तरण का निर्लज्ज नियोजन ,पराकाष्ठा पर था /
भेद भाव ,छूत -अछूत सामाजिक वैमनस्यता परवान थी ,एकता की भावना ,समर्पण की भावना ,त्याग की इच्छा कहीं सून्य में विलीन थी ,कुछ उत्साही जन आगे आये पर उनकी सीमित सोच ने उन्हें गर्त में डाल दिया मदान्धों ,वंचकों जिनका चरित्र है , मात्र संभाषण,सत्ता , अवसर पाते ही धर्मान्तरित हो गए, विदेशी आततायियों के समर्थक बन, हमारी संस्कृति के कट्टर दुश्मन बन गए , अनेक बड़े छोटे राजाओं ,जमींदारों पुरोहितों ने पद- पदवी के लिए धर्म और इमान बदल लिया , बच गए तो निरीह जन ,जो संगठन के, सच्चे नेतृत्व ,के आभाव में,लाचार अधोगति को प्राप्त हो रहे थे / कोई नहीं था ,मुस्ताक-ए- मुकद्दर कहने वाला की एक नूर के बन्दों पर इतना जुल्म क्यों ? दिशा-हीन थी जनता ,हिन्दू जनमानस किकर्तव्यविमूढ़......../
बालपन में अपने पिताश्री से उचारा प्रश्न ,{जब कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर जी से अपनी रक्षा हेतु याचना करने आये }की ये लोग क्या चाहते हैं ? तब नौवें पातशाह ने कहा था -किसी बड़ी आत्मा की क़ुरबानी / तब गुरु गोबिंद सिंह का बयान था - तो आप से बड़ा कौन है इस लोक में /
गुरु तेग बहादुर सिंह साहब ने कहा था - जाओ कह दो मुग़ल बादशाह से- मुझे धर्मान्तरित कर ले ,पीछे सारा हिंदुस्तान मुसलमान हो जायेगा / जो आततायियों का दिवा- स्वप्न बन कर रह गया / मिरी पीरी दे मालिक को कोई ताकत मुसलमान नहीं बना सकी ..........कुर्बान हो गए हिंदुस्तान की संस्कृति के लिए /
आगे दसवी पातसाही के स्वरुप में आप आये , इन्शानियत की राह में ,ज्ञान और शक्ति का संचार कर -
" मानुख की जात सब एकै पहिचानिबो "
का संकल्प ले ",चिड़ियाँ ते मैं बाज तुडाऊ" का जज्बात , "एक लाख तों एक लडाऊ" को मैदान -ए- जंग सिद्ध भी कर दिया / [ देखें चमकौर साहिब का इतिहास ] किसी भेद-भाव से दूर प्रेम की भाषा ,मनुष्यता का संयोजन ,गौरव का पाठ सामान रूप से पढाया / एक विजेता के रूप में एक विशिष्ट पंथ का निर्माण किया -
"जो तो प्रेम खेलन का चावो, सिर धर तली गली मेरे आओ "
यही नहीं मेरे सतगुरु ने कहा -
" जे मारग पैर धरिजे ,सिर दीजै, कांह न कीजै "
अनेकों जंग लड़े ,विजय पाई ,इन जंगों में यही निर्विवाद रहा की राजे -रजवाड़े ,जमींदारों ने गुरुओं का विरोध किया ,इनके विरुद्ध मैदान -ए-जंग आमने- सामने युद्ध लड़े / धन्य हैं गुरु गोबिंद सिंह ,करुना के सागरविजय के बाद भी उन्हें माफ़ी दी ,बैर नहीं साधा .......धर्म और संस्कृति का पाठ पढाया /
आततायियों का कहर थमा नहीं ,गुरु गोबिंद सिंह के खालसे का सैलाब भी कहाँ रुका ,रूह-ए-मौत कांप गयी , सिक्खी और सिक्ख नहीं डिगा अपनी राह से / मासूम चार पुत्र - " बाबा अजित सिंह जी ,बाबा जोरावर सिंह जी ,बाबा फ़तेह सिंह जी ,बाबा जुझार सिंह जी " जो ७-११ साल की उम्र के बिच रहे गौरवमयी इतिहास के शिखर- विन्दु बने / दादा गुरु तेगबहादुर सिंह जी के नक्स-ए- कदम पर चल, पिता के हमराह बनकर दो ने दीवार की नीव में चुना जाना स्वीकार कर , दो ने चमकौर साहिब के मैदान में जहाँ इतिहास के अनुसार ,पांच लाख फ़ौज ने घेरा डाला था ,आमने -सामने लड़ कर वीरगति पाकर अपने दूध का, संस्कृति का कर्ज अदा कर दिए . / माँ -बाप ,पत्नी ,पुत्र, कुटुंब सब बिखर गया ,अगर नहीं बिखरे तो गुरु गोबिंद सिंह / गुरु साहब का कारवां निरंतर चलता रहा ....../ उन्होंने घोषित किया -
" खालसा मेरो रूप है खास , खालसे में मैं करूँ निवास "
खालसा का अर्थ - "विशुद्ध " { PURE } से है ,मंतव्य यह की सन्मार्ग ,सदाचारी ,वलिदानी, परोपकारी ,समर्पित राह का अनुगामी मेरा खालसा ..../
उन्हों ने पवित्र अमृत का पान करा कर , खालसे को अमर कर दिया, समता ,सद्भाव प्रेम समर्पण ,शक्ति सद्ज्ञान का समन्वयन कर , पंच्प्यारों का सृजन कर इलाही स्वरुप दिया / स्वयं उनसे दीक्षित होने की याचना की और पञ्च -प्यारों के सिक्ख बने ----
" वाहो,वाहो गोबिंद सिंह जी आपे गुरु चेला "
हम उनके सच्चे वारिस बन सकें, दाते हमें वह शक्ति दे , आत्मबल दे , उसके बताये रस्ते पर चल सकें ,
अनुकरण कर सकें ,आत्मसात कर सकें ---
देहि शिवा बर मोहे है , शुभ करमन तों कबहूँ न डरों
न टरों अरि सों ,जब जाय लड़ों ,निश्चय कर अपनी जीत करों
जब आप ही औध निधान बने ,अधिहिरण में तब जूझ मरों-
रोम - रोम ऋणी है ,ये जमीं आशमान ऋणी है, तेरी राह में दाते ! चल कर ,फ़ना होने का अवसर हर जन्म में मिले / मेरी यही अरदास है /
समस्त देशवासीयों को गुरु पर्व की शुभकामनाएं ,गुरु का अमृत भरा प्यार, अनवरत वर्षता रहे ..भींग जाये तन मन ,अछुर्ण रहे हमारी धरा ,संस्कृति गौरव ....द्रोहियों से पापियों से /
वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फ़तेह !
उदय वीर सिंह
04 /01 /2012
[ संक्षिप्त अनुशीलन ]
शिख -धर्म के दसवें गुरु का आगमन मूलतः ऐसी वेला में हुआ जब - जोर, जुल्म ,पीड़ा से कराहती मानवता ,असहनीय वेदना, अंतहीन दुःख ,बेबसी, लाचारी में आबद्ध ,उद्धार की प्रतीक्षा में, अंतहीन अंधेरोंमें डूबी करुण पुकार के सिवा कुछ नहीं था उसके लबों पर ,आतंकी अत्याचारी धन ,धर्म, धरती, अस्मिता पर, निर्लज्जता ,निर्ममता से आघात कर रहे थे , निरंतर जनेऊ का संग्रहण ,वजूद ही मिटाने का उपक्रम , बलात धर्मान्तरण का निर्लज्ज नियोजन ,पराकाष्ठा पर था /
भेद भाव ,छूत -अछूत सामाजिक वैमनस्यता परवान थी ,एकता की भावना ,समर्पण की भावना ,त्याग की इच्छा कहीं सून्य में विलीन थी ,कुछ उत्साही जन आगे आये पर उनकी सीमित सोच ने उन्हें गर्त में डाल दिया मदान्धों ,वंचकों जिनका चरित्र है , मात्र संभाषण,सत्ता , अवसर पाते ही धर्मान्तरित हो गए, विदेशी आततायियों के समर्थक बन, हमारी संस्कृति के कट्टर दुश्मन बन गए , अनेक बड़े छोटे राजाओं ,जमींदारों पुरोहितों ने पद- पदवी के लिए धर्म और इमान बदल लिया , बच गए तो निरीह जन ,जो संगठन के, सच्चे नेतृत्व ,के आभाव में,लाचार अधोगति को प्राप्त हो रहे थे / कोई नहीं था ,मुस्ताक-ए- मुकद्दर कहने वाला की एक नूर के बन्दों पर इतना जुल्म क्यों ? दिशा-हीन थी जनता ,हिन्दू जनमानस किकर्तव्यविमूढ़......../
बालपन में अपने पिताश्री से उचारा प्रश्न ,{जब कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर जी से अपनी रक्षा हेतु याचना करने आये }की ये लोग क्या चाहते हैं ? तब नौवें पातशाह ने कहा था -किसी बड़ी आत्मा की क़ुरबानी / तब गुरु गोबिंद सिंह का बयान था - तो आप से बड़ा कौन है इस लोक में /
गुरु तेग बहादुर सिंह साहब ने कहा था - जाओ कह दो मुग़ल बादशाह से- मुझे धर्मान्तरित कर ले ,पीछे सारा हिंदुस्तान मुसलमान हो जायेगा / जो आततायियों का दिवा- स्वप्न बन कर रह गया / मिरी पीरी दे मालिक को कोई ताकत मुसलमान नहीं बना सकी ..........कुर्बान हो गए हिंदुस्तान की संस्कृति के लिए /
आगे दसवी पातसाही के स्वरुप में आप आये , इन्शानियत की राह में ,ज्ञान और शक्ति का संचार कर -
" मानुख की जात सब एकै पहिचानिबो "
का संकल्प ले ",चिड़ियाँ ते मैं बाज तुडाऊ" का जज्बात , "एक लाख तों एक लडाऊ" को मैदान -ए- जंग सिद्ध भी कर दिया / [ देखें चमकौर साहिब का इतिहास ] किसी भेद-भाव से दूर प्रेम की भाषा ,मनुष्यता का संयोजन ,गौरव का पाठ सामान रूप से पढाया / एक विजेता के रूप में एक विशिष्ट पंथ का निर्माण किया -
"जो तो प्रेम खेलन का चावो, सिर धर तली गली मेरे आओ "
यही नहीं मेरे सतगुरु ने कहा -
" जे मारग पैर धरिजे ,सिर दीजै, कांह न कीजै "
अनेकों जंग लड़े ,विजय पाई ,इन जंगों में यही निर्विवाद रहा की राजे -रजवाड़े ,जमींदारों ने गुरुओं का विरोध किया ,इनके विरुद्ध मैदान -ए-जंग आमने- सामने युद्ध लड़े / धन्य हैं गुरु गोबिंद सिंह ,करुना के सागरविजय के बाद भी उन्हें माफ़ी दी ,बैर नहीं साधा .......धर्म और संस्कृति का पाठ पढाया /
आततायियों का कहर थमा नहीं ,गुरु गोबिंद सिंह के खालसे का सैलाब भी कहाँ रुका ,रूह-ए-मौत कांप गयी , सिक्खी और सिक्ख नहीं डिगा अपनी राह से / मासूम चार पुत्र - " बाबा अजित सिंह जी ,बाबा जोरावर सिंह जी ,बाबा फ़तेह सिंह जी ,बाबा जुझार सिंह जी " जो ७-११ साल की उम्र के बिच रहे गौरवमयी इतिहास के शिखर- विन्दु बने / दादा गुरु तेगबहादुर सिंह जी के नक्स-ए- कदम पर चल, पिता के हमराह बनकर दो ने दीवार की नीव में चुना जाना स्वीकार कर , दो ने चमकौर साहिब के मैदान में जहाँ इतिहास के अनुसार ,पांच लाख फ़ौज ने घेरा डाला था ,आमने -सामने लड़ कर वीरगति पाकर अपने दूध का, संस्कृति का कर्ज अदा कर दिए . / माँ -बाप ,पत्नी ,पुत्र, कुटुंब सब बिखर गया ,अगर नहीं बिखरे तो गुरु गोबिंद सिंह / गुरु साहब का कारवां निरंतर चलता रहा ....../ उन्होंने घोषित किया -
" खालसा मेरो रूप है खास , खालसे में मैं करूँ निवास "
खालसा का अर्थ - "विशुद्ध " { PURE } से है ,मंतव्य यह की सन्मार्ग ,सदाचारी ,वलिदानी, परोपकारी ,समर्पित राह का अनुगामी मेरा खालसा ..../
उन्हों ने पवित्र अमृत का पान करा कर , खालसे को अमर कर दिया, समता ,सद्भाव प्रेम समर्पण ,शक्ति सद्ज्ञान का समन्वयन कर , पंच्प्यारों का सृजन कर इलाही स्वरुप दिया / स्वयं उनसे दीक्षित होने की याचना की और पञ्च -प्यारों के सिक्ख बने ----
" वाहो,वाहो गोबिंद सिंह जी आपे गुरु चेला "
हम उनके सच्चे वारिस बन सकें, दाते हमें वह शक्ति दे , आत्मबल दे , उसके बताये रस्ते पर चल सकें ,
अनुकरण कर सकें ,आत्मसात कर सकें ---
देहि शिवा बर मोहे है , शुभ करमन तों कबहूँ न डरों
न टरों अरि सों ,जब जाय लड़ों ,निश्चय कर अपनी जीत करों
जब आप ही औध निधान बने ,अधिहिरण में तब जूझ मरों-
रोम - रोम ऋणी है ,ये जमीं आशमान ऋणी है, तेरी राह में दाते ! चल कर ,फ़ना होने का अवसर हर जन्म में मिले / मेरी यही अरदास है /
समस्त देशवासीयों को गुरु पर्व की शुभकामनाएं ,गुरु का अमृत भरा प्यार, अनवरत वर्षता रहे ..भींग जाये तन मन ,अछुर्ण रहे हमारी धरा ,संस्कृति गौरव ....द्रोहियों से पापियों से /
वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फ़तेह !
उदय वीर सिंह
04 /01 /2012
6 टिप्पणियां:
गुरु गोविन्द सिंह संस्कृति की अस्मिता के महा रक्षक थे नहीं तो अन्य देशों की तरह ही तलवार के जोर पर इस्लाम सबको निगल गया होता।
आपके सुन्दर सशक्त लेख से गुरू तेग बहादुर जी और गुरू गोविन्द सिंह जी के बारे में हमे सुन्दर
जानकारी मिली.परम आदरणीय गुरुओं की कुर्बानी और पवित्र वाणी को शत शत नमन.
प्रभु हम सब को सदा सद् मार्ग दिखाएँ.
पवित्र पावन प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार,उदय जी.
@रोम-रोम ऋणी है...
यकीनन ऋणी हैं और रहेंगे ..
उनकी शिक्षाएं और दिखाए रास्ते इस देश की जान हैं !
गुरु पर्व पर बधाईयाँ !
सार्थक सटीक प्रेरक लेख बेहतरीन पोस्ट,.बधाई
गुरू पर्व की हार्दिक बधाई,...
मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है,"काव्यान्जलि":
सराहनीय प्रस्तुति
जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें
गुरु सत्ता को प्रणाम, नमन और वंदन.
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