खारों के दरम्यान ,गुजारी है जिंदगी ,
हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-
टूट जाना ,बिखर जाना ,सहेजने को ख्वाब
आवाज -ए- आवाम को इनकलाब कहते हैं -
गुमनामी के अंधेरों में ,फ़रिश्ते रहा करते ,
गुमनाम न होने की फितरत ,चिराग कहते हैं -
लिखता है मोहब्बत के अफसाने ,ठोकरें खाने वाला
फसाद को जमीं देता है ,नवाब कहते हैं -
किसी रिहायिस की ख्वाहिश ,कैद करती है,
जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं -
उदय वीर सिंह
हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-
टूट जाना ,बिखर जाना ,सहेजने को ख्वाब
आवाज -ए- आवाम को इनकलाब कहते हैं -
गुमनामी के अंधेरों में ,फ़रिश्ते रहा करते ,
गुमनाम न होने की फितरत ,चिराग कहते हैं -
लिखता है मोहब्बत के अफसाने ,ठोकरें खाने वाला
फसाद को जमीं देता है ,नवाब कहते हैं -
किसी रिहायिस की ख्वाहिश ,कैद करती है,
जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं -
उदय वीर सिंह
15 टिप्पणियां:
bahut umda ghazal likhi hai daad kabool karen.
किसी रिहायिस की ख्वाहिश ,कैद करती है,
जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं -
बहुत खूब क्या बात है सोलह आने सही, मुबारक हो
ग़ज़ल में अगर मतले के दो शेर होते तो बहुत अच्छा लगता!
फिर भी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है!
अहा, रंग जमा सबकी आजादी का..
टूट जाना ,बिखर जाना ,सहेजने को ख्वाब
आवाज -ए- आवाम को इनकलाब कहते हैं
वाह!!!!!बहुत खूब उदयवीर जी...
गजल बहुत अच्छी लगी,....बधाई
फसाद को जमीं देता है ,नवाब कहते हैं -
बहुत खूब!
बहुत सही!!
@जिसका वतन अपना हो आजाद कहते हैं
बहुत सुन्दर!
खारों के दरम्यान ,गुजारी है जिंदगी ,
हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-
wah.....kya paribhasha hai......
vah---------------
ब्लॉग -------साहित्य सुरभि
हँसता है दुश्वारियों में,गुलाब कहते हैं...
बहुत खूब भाई जी ....
वाह ...बहुत ही बढि़या।
वाह उदयवीर जी आपतो कमाल रचते हैं!
vah bahut khoob.mere blog par aane ke liye shukriya.
गुमनामी के अंधेरों में ,फ़रिश्ते रहा करते ,
गुमनाम न होने की फितरत ,चिराग कहते हैं -
...बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति..
हँसता है दुश्वारियों में ,गुलाब कहते हैं-
बहुत खूब...
सादर.
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