सोमवार, 9 अप्रैल 2012

भवनिष्ठ

सृजन ,स्वरूप ,संवरता है,
उन्हें     ख़ुशी      दे      दो-
          प्रतीक्षा     में  अधर   सूखे ,
          उन्हें      हंसी      दे        दो -
*
वलय अभिशप्त  तिरोहित  हो  ,
सुयश  ,सम्मान   के    सागर ,
वरण  शुभ  का नियोजित हो ,
मिले    सुधा     भरी      गागर-


       चराचर मांगता है ,स्नेह  से 
        भरी       अंजुरी     दे      दो-
*
कामनाएं     विकल्पित    हैं ,
मिलती       प्रयत्नों          से ,
आशाओं     की   विविधताएँ ,
भरें      अनेक      रंगों      से -


        अग्रसर   बेल   जो    बीजी ,
        ह्रदय    की     देहरी   दे  दो-
*
सुनी  न  हों  कल्पनाओं  से 
संवेदना      की      विथियाँ-
रचे  नव गीत समीर, सरस 
परिमल     की       शोखियाँ -


         मुक्त   कर   दो  उड़ानों  को ,
         प्रेम     को    प्रेयसी   दे  दो -
*
 प्रतीक्षित  प्रभात की लाली ,
बाँहों     की    मंजरी   दे   दो- 


                                        उदय वीर सिंह .
     

13 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

रविकर ने कहा…

शब्द चयन -सुन्दर
भाव -प्रभावशाली |
बहाव- लाजवाब ||

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर......
सदा की तरह.........

सादर

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर......
सदा की तरह.........

सादर

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई उदय जी बहुत अच्छी कविता |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

मुक्त कर दो उड़ानों को
प्रेम को प्रेयसी दे दो
प्रतीक्षित प्रभात की लाली ,
बाँहों की मंजरी दे दो-
भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर पंक्तियों सजी लाजबाब रचना...उदय वीर जी,..वाह!!!क्या बात है

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प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, सबको सबका अपेक्षित आकाश मिले।

मनोज कुमार ने कहा…

रचना का प्रवाह और अलंकृत भाषा मन मोह लेती है।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुंदर.....हमेशा की तरह..बधाई उदय जी..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सुंदर ,कोमल ,मयूरपंखी और अनमोल दुर्लभ शब्दों के मोती उस पर संतुलित भाव!!!!!!!!!हृदय से नमन करता हूँ आपकी लेखनी को......

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

बैसाखी के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सुनी न हों कल्पनाओं से
संवेदना की विथियाँ-
रचे नव गीत समीर, सरस
परिमल की शोखियाँ

कविता के भाव मन को मुग्ध कर रहे हैं।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सुनी न हों कल्पनाओं से
संवेदना की विथियाँ-
रचे नव गीत समीर, सरस
परिमल की शोखियाँ

कविता के भाव मन को मुग्ध कर रहे हैं।