रविवार, 10 जून 2012

उठो सवेर हुयी -



उठो सवेर हुयी -
सपने जगा रहे हैं सोने वालों


घोड़े  की जीन , गधे   पर  लगाने   वालों ,
दिखाने  को  सूरज ,दीया  जलाने  वालों,
सजा  काट  चुके  निर्दोष,को रिहा कराने ,
सूखे  दरख्त  को हरा करने के श्वप्नद्रष्टा  ,
बिना    लाश    की   अर्थी ,  उठाने  वालों -


सूरज   हरा   नहीं    हुआ   तारीखें  गवाह,
चाँद   के    गोरेपन    से ,   जलने   वालों ,
बर्फ   बनती   है , जब तापमान गिरता है ,
गिरना   तापमान   का , तूफान   लाता है
सन्देश    काफी    है , फरेब   करने वालों -


अपने   फर्ज   को  अहसान  बताने वालों ,
झुका    नहीं   आसमान ,  झुकाने   वालों  ,
हमदर्द     को    भी  , मर्ज   बताने   वालों
खता  बेटे की, सजा  भुगतता  रहा ताउम्र,
स्वार्थ    में    गधे  को  बाप  बनाने वालों -


पहचान    कर  ,  रोटी   में  खून   किसका ,
मौज    से  दूध   में ,  डुबोकर  खाने  वालों
रातों   की  नींद , दिन   का  सकून  बेचा है
मिटाकर रवानी, वजूद   की   तलाश  में है,
घर   दो  इन्सान   को  , कब्र  बनाने वालों -


माँगा  था दूध , पैदा    होकर    छाती    का ,
दुधमुहें    को      नुडल     खिलाने    वालों ,
लल्ली- लल्ला  थे ,संस्कृति   की  पहचान,
शिकार  हो  गए ,उद्दाम -व्यूह   रचना   के ,
व्यंजन सा बना,अपने हाथों परोसने वालों -


अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता,गाली  तो   नहीं,
परंपरा की जिद में,मुक्ति  को मिटाने वालों -
रात   के  अँधेरे  में  होठ  रसीले   लगते  हैं,
जमीन  पर पाँव मैले हो जायेंगे,का ख्याल,
संसद  में विधेयक  पर सवाल उठाने वालों-


अवशेष  अस्थियाँ  हैं , निचुडती  नहीं  अब
अध्ययन    कर    रही   है ,  विद्वान -  सेना ,
मरने     से    पहले    हस्ताक्षर    चाहते   हैं,
बांड   अगले   जनम    का    भरवा   रहे  हो 
बंधन       के     लिए  , मुक्ति     देने    वालों -




                                              उदय वीर सिंह 




                                 



10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जागरण का प्रथम निनाद हो सकता है यह, नहीं तो विनाश की अन्तिम चेतावनी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर जागरण प्रस्तुति!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

हर रचना की तरह ये भी बेहतरीन................................

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

करारा व्यंग्य ..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,,, ,

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात है!!
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

अवशेष अस्थियाँ हैं , निचुडती नहीं अब
अध्ययन कर रही ह , विद्वान - सेना ,
मरने से पहले हस्ताक्षर चाहते हैं,
बांड अगले जनम का भरवा रहे हो
बंधन के लिए , मुक्ति देने वालों -

नमस्कार, सत श्री अकाल जी !
आपने को एकदम से ललकार दिया है उन सबको, कितनी ऊर्जा भरी है बातोंमे ... लेकिन क्या ये जागेंगे? ये तो चिकने घड़े हैं, थाली के बैंगन पता नहीं कब किधर लुढक जायेंगे. दुआ करूँगा की असर हो आपकी बातों का. आखिर इसी देश के हैं वो भी, कुछ तो गैरत बची होगी, संस्कृति का छोटा सा अंश भी इस उर्वक से नई सकती पाकर खिल उठेगा, ऐसी आशा करते हैं. मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

क्या कहने??
लाजवाब....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

क्या ही अद्भुत रचना है....
सादर.

बेनामी ने कहा…

You really make it appear so easy together with your presentation however
I in finding this topic to be actually one thing which I believe
I might never understand. It seems too complex and very wide
for me. I'm taking a look ahead in your subsequent post, I will try to get the grasp of it!
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