मंगलवार, 3 जुलाई 2012

पथ से राजपथ तक ...




पथ से जन-पथ ,
राज-पथ तक  की
यात्रा ,
विजेता  की तरह हो गयी .....
कितनी घटनाएँ ,दुर्घटनाएं ,
उत्पन्न की ,
निस्तारित की ... /
उखाड़े ,दफनाये गए 
गैर- जरुरी मसले ..
छिपाए खंजर ,
खंजर के घाव, पापों के अम्बार,
रचे षडयंत्र , कुटिलता ,कूटनीति ,
घात- प्रतिघात  /
"प्यार और जंग " में सब कुछ जायज का  भाव,
लाशों के ढेर ,
भावनावों के ढूह ,
बिलबिलाती मानवता,
की छाती पर,
दंभ से , ओढ़े शालीनता की 
चादर .....
फहरा रहा है ,मुस्कराते हुए ,
ध्वज  !
विजेता का ,
राज-पथ ,
पर .....


                         उदय वीर सिंह 
                    02 /07 /2012 .
   

6 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह...
गहन रचना
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पता नहीं कितने ऐसे ही दृश्यों को पचाने का क्रम है राजपथ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक कटाक्ष करती सुंदर प्रस्तुति

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

बहुत सुन्दर , बढ़िया ..

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार


प्रवरसेन की नगरी
प्रवरपुर की कथा



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मनोज कुमार ने कहा…

विचारोत्तेजक रचना। इस तरह का गर्व अधिक दिन तक टिकता नहीं।