मेरा रोपा
हुआ ,नन्हा सा,
अविकसित ,
स्वरुप
लिए अपार संभावनाएं ,
छिपाए सुखद आँचल ,
ठंढी छाँव ,
फल ,प्राण- वायु ,संवेदना ..../
बैठ कर इसकी गोंद में
कल,
लिखेंगे अपने अतीत ,गीत
बुनेंगे सपने ....
मीत के ,प्रीत के
सुनेगा ,सुनायेगा ,दास्तान .....
ये इतना बड़ा हो जायेगा ,
हम भी .....
फिर भी इसकी छाँव पाएंगे /
हम नहीं होंगे
यह रहेगा ,साक्षी बन कर ,
दास्तान बनकर ..
कहेगा ....
मैं बिरवा हूँ
अतीत का ,
बृक्ष ,
वर्तमान का.....
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
मैं बिरवा हूँ
अतीत का ,
बृक्ष ,
वर्तमान का.....
अनुपम भाव ...
अतीत ही बर्तमान में साक्षी बनकर दास्तान् कहेगा,
लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,,बधाई उदय जी,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
अतीत बना वर्तमान, भविष्य छिपाये भी बैठा है वर्तमान..
ज़िन्दगी इसी तरह चलती रहती है। एक नज़ुक अहसास को क़ैद किया है आपने इस रचना में।
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ !
बैठ कर इसकी गोंद में
कल,
लिखेंगे अपने अतीत ,गीत
बुनेंगे सपने ....
मीत के ,प्रीत के.-वृक्ष का मानवीकरण करती बहुत सशक्त रचना ....उदय वीर जी "गोंद".को गोद कर लें ,इतनी सुन्दर रचना में वर्तनी की अशुद्धि खटकती है ......कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
What Puts The Ache In Headache?
achchhe bhaav
मैं बिरवा हूँ
अतीत का ,
बृक्ष ,
वर्तमान का.....
बहुत कोमलता के साथ बहुत गंभीर रचना ....
मैं बिरवा हूँ
अतीत का ,
बृक्ष ,
वर्तमान का.....
अनुपम भाव ...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
वाह .!!!.वृक्ष हों या भावी पीढ़ी ..सही तरह से रोपी जाए तो निश्चय ही एक सुदृढ़ भविष्य का निर्माण करती है ..
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