ओ मेरे,
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों
अहसास ,अपनापन का
वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज
ध्वनित होते, प्रेम गीत ,
बहती जायें तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...
उदय वीर सिंह
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों
अहसास ,अपनापन का
वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज
ध्वनित होते, प्रेम गीत ,
बहती जायें तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...
उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
सुख हर पथ पर बाँटे हम..
बहुत सुन्दर प्रार्थना की है आपने ...
शुभकामनाये
बहुत सुन्दर प्रार्थना की है आपने ...
शुभकामनाये
होय पेट में रेचना, चना काबुली खाय ।
उत्तम रचना देख के, चर्चा मंच चुराय ।
....
ओ मेरे,
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू.......ख़ुश्बू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों .....केलेंडरओं .....
अहसास ,अपनापन का
वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज
ध्वनित होते, प्रेम गीत ,
बहती जायें तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...
बढ़िया रचना है ...
वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
वाह, अनुपम शब्द और भाव का समन्वय.
बहुत सुंदर !
क्षितिज होगा
आनन्दित हमारा
और तुम्हारा
उदय वीर की
कविता के
तीर से
गुंजायमान होगा
जब आकाश सारा !
बढ़िया प्रस्तुति |
आशा
बहुत सुंदर...
बहुत ख़ूब! वाह!
कृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
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