गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

ओ मेरे, मुसव्विर ....

ओ मेरे,
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों 
अहसास ,अपनापन का 
वेदना  की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज 
ध्वनित होते,  प्रेम गीत ,
बहती जायें  तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन 
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...

                                   उदय वीर सिंह 






10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुख हर पथ पर बाँटे हम..

मंजुला ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रार्थना की है आपने ...
शुभकामनाये

मंजुला ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रार्थना की है आपने ...
शुभकामनाये

रविकर ने कहा…

होय पेट में रेचना, चना काबुली खाय ।

उत्तम रचना देख के, चर्चा मंच चुराय ।

virendra sharma ने कहा…

....
ओ मेरे,
मुसव्विर !
बनाना एक आशियाना ,
मजबूत बुनियाद से ,
जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
खिड़कियाँ हो ,
सामने खुला क्षितिज
लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू.......ख़ुश्बू
भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
तारीखों को ,
दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों .....केलेंडरओं .....
अहसास ,अपनापन का
वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,
खुले प्रकोष्ठ,
झीने मखमली परदे ,
गुलाबी दीवारें ,
बजते साज
ध्वनित होते, प्रेम गीत ,
बहती जायें तरंगें ....
गाँव ,शहर,वन-मधुवन
आनंदित हो
क्षितिज सारा ...

बढ़िया रचना है ...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

वेदना की साँझ में ,
संवेदना की मशाल ,

वाह, अनुपम शब्द और भाव का समन्वय.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

क्षितिज होगा
आनन्दित हमारा
और तुम्हारा
उदय वीर की
कविता के
तीर से
गुंजायमान होगा
जब आकाश सारा !

Asha Lata Saxena ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
आशा

रश्मि शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत ख़ूब! वाह!

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