शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

मेरा गुनाह क्या है....


बेबे !
आपने कहा था -
तू बापू की बैसाखी,
आँख की रोशनी ,घर का चिराग ,
बहन की राखी की कलाई,
भाई का भरोषा ,बुआ का अधिकार,
मेरे आँचल का सरदार,
गुरुओं का संसार
बनना...l
आपकी दवा ,पर्चियां मेरे  हाथ ,
जिन्दा जला दिया गया,
नहीं मालूम किस गुनाह की
सजा मिली मुझे ...... l
आप दर बदर भटक,
उनसे  मेरा गुनाह पूछती हैं ,
मांगती हैं न्याय,मेरे क़त्ल का......l
सरोकार किसको है,
कौन जनता है,
आपके आंसुओं का मोल .....?
काश ! एक बार जन्म लेता और,
पोंछ लेता आंसुओं को ,
कर लेता गुनाह ,
जो मैंने,
किया नहीं .......l .

                            - उदय वीर सिंह

 






2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
आभार आदरणीय ||

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच में कई जन्म भी कम हैं..