भाषण तेरा सस्ता है
व्यवहार में है आवारापन -
हाथों में गुलदस्ता है
कानों में कितना बहरापन-
जिह्वा पर मीठी मिश्री है ,
छल - वासना आँखों में -
पांचाली या अनसुईया,
कुंती, जोधा की स्वांशों में-
निति-वैधव्य ही जाई क्यों
कुंठा व बंजारापन-
पूत तू है एक बेटी का,
फिर भी बेटी का घाती है,
तेरे घर में तेरी बेटी,
असुरक्षित है , मुरझाती है -
रोती कहती सृजना हूँ मैं,
क्यों नहीं है अपनापन-
नेता अभिनेता रक्षक साधू
कर्णधारों का नाम देख-
बंधू ,कुटुंब, मित्र , सम्बन्धी
रक्त - रंजित हैं ,पढ़ प्रलेख-
संस्कार से है मानस खाली,
कर्म से है नक्कारापन-
-उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
सही कहा है ...
सही भी और आज का सच भी
जीवन ऐसा धिक्कारा है,
कर्मशून्यता में हारा है।
बहुत ख़ूब!
शायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!
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