मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

बागी नहीं हूँ मैं ...



मितरां  किसी भी राग का रागी नहीं हूँ मैं 
कहता  हूँ  अपनी   बात , बागी नहीं हूँ  मैं -
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निशान  दिख  रहे  हैं, अपनों  ने  है  दिया
दागा  गया   हूँ    यार  , दागी  नहीं  हूँ   मैं -
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सच   बोलने  का  हमसे   गुनाह  हो  गया,
कैसे  कहेंगे  हम  , अपराधी  नहीं   हूँ   मैं-
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हर्फों  में  दिल की धड़कन, होती  नहीं बयां,
सुनाता  हूँ  दिल  की  बात ,किताबी  हूँ  मैं -
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मैकदे  का   देखने   जाता  हूँ   मैं  मिजाज
साकी  को  देखता  हूँ ,शराबी  नहीं  हूँ   मैं-
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                                ---   उदय वीर सिंह


8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सच बोलने का हमसे गुनाह हो गया,
कैसे कहेंगे हम , अपराधी नहीं हूँ मैं-

बहुत बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति ,,,उदय जी,,

RECENT POST: मधुशाला,

ਸਫ਼ਰ ਸਾਂਝ ने कहा…

आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी |
सच बोलने का हमसे गुनाह हो गया,
कैसे कहेंगे हम , अपराधी नहीं हूँ मैं-
ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं |
बधाई !

हरदीप

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

शानदार |

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Unknown ने कहा…

दिल को छू गयी ये रचना! बहुत ही सटीक और सुसंगठित प्रस्तुति!

-Abhijit (Reflections)

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…


निशान दिख रहे हैं, अपनों ने है दिया
दागा गया हूँ यार , दागी नहीं हूँ मैं -

दर्द की इससे बड़ी अभिव्यक्ति क्या कुछ हो सकती है? सब कुछ तो समेत लिया है इसमें उदय्व्वीर भी. लेकिन आप वीर है, वीरता उदय हो रहा है आप उगते रहें, चमकते रहें, दमकते रहें और लिखते रहें, हम पढ़ते रहें, यही अभिलाषा है...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..

vandana gupta ने कहा…

निशान दिख रहे हैं, अपनों ने है दिया
दागा गया हूँ यार , दागी नहीं हूँ मैं -
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सच बोलने का हमसे गुनाह हो गया,
कैसे कहेंगे हम , अपराधी नहीं हूँ मैं…………बहुत बढिया