
हमारे गाँव में ......
सरफ़रोश हम हो गए ,
रह के उसकी छाँव में-
मत दे कभी तूं खौफ को,
मौत से डरते नहीं
हम वतन की आशिकी में ,
मर मिटेंगे शान में -
द्रोह के उन्माद में मत ,
भूल अपने अंत को
शैतान की औकात कितनी,
वो रहे हैं पांव में-
कट गया सिर फ़िक्र क्या ,
रण कभी छोड़ा नहीं
तन वतन का,मन वतन का,
मर मिटेंगे आन में-
मंजिल हमारी है कहाँ ,
हम बखूबी जानते .....
आँचल तिरंगा ढांप लेगा
जब सिर गिरा मैदान में ......
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
हम जियेंगे और संग में जियेगा यह देश अपना।
कट गया सिर फ़िक्र क्या ,
रण कभी छोड़ा नहीं
तन वतन का,मन वतन का,
मर मिटेंगे आन में-
बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
साझा करने के लिए आभार...!
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शुभ रात्रि ....!
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