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आसमां डोलता है जमीं डोलती है
मेरे वीर की जब जुबां बोलती है -
नेह संकल्प का आईना मुस्कराए
एक प्यारी बहन की ख़ुशी बोलती है -
कच्चे धागों ने बाँधे हैं फौलाद को भी
जब अनमोल बंधन बहन बांधती है -
वचन है , वसन है , शमशीर समिधा
मान सम्मान खातिर चली है जली है-
जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -
- उदय वीर सिंह.
5 टिप्पणियां:
जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -
बहुत सुन्दर!!!
भाई बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (21-08-2013) को हारे भारत दाँव, सदन हत्थे से उखड़े- चर्चा मंच 1344... में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
सार्थक पहल
जाति ,मजहब फिरकों से बहुत दूर धागे
भाई - बहना की राखी नजर खोलती है -बहुत सुंदर
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रक्षा की पुकार सदा ही रही है, उसी आश्वासन का उत्सवीय प्रतिरूप है रक्षाबंधन।
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