उदय वीर सिंह
[ प्रश्नगत सन्दर्भों में ]
मैं बहैसियत कलमकार अपनी संवेदना व्यक्त की है ,भावना ,पीड़ा ,संवेदनाओं को मैं समझ सकता हूँ, मेरी सामर्थ्य क्या है, कुछ भी नहीं ,जितना कर सकता हूँ करता हूँ | कह कर अपनी ही नज़रों में मैं गिरना नहीं चाहता, सिर्फ यही कह सकता हूँ कि किसी पद- प्रतिष्ठा का मैं याचक नहीं | मैं राजनेता नहीं हूँ वादे और फरेब नहीं करता | पीड़ा क्या होती है ,इसका संज्ञान है मुझे ,अगर पीड़ा ,
ले नहीं सकता तो देने की सोच भी नहीं सकता ..शायद यही मेरे जीवन का दर्शन भी है |
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
इतना ही तो चाहिये भी होता है ना ।
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