ये कल भी उदास था
वतन आज भी उदास है -
कल दूसरों के पास था
आज अपनों के पास है-
कल अपाहिजों के सिर सजा ताज था
आज वहशियों का आतंकवाद है
कल शोलों का उजास था
आज अंधेरों का वास है-
कल लूटा गया अपनों के निमंत्रण पर
तिल तिल कर जीता आज भी षडयन्त्रों पर-
कल जाति का झंझावात था
आज मजहबों का अधिवास है -
कल रोई थी जोधा दुर्गावती अपनी तकदीर पर
फैसले लिए गए कीमत आबरू और जागीर पर -
कल प्रवंचना और प्रलाप था
आज हारे जुआरी का संताप है -
कल था एकलव्य व द्रोण,संबूक-श्रीराम का द्वंद
अशहिष्णुता का उद्भव कर्त्तव्य परायणता का अंत-
कल भोग्या थी वनवास था
नारी आज अबला है संत्रास है-
कल भी वतन उदास था
आज भी वतन उदास है -
आत्म - मुग्धता में जी लेते
अशेष माजी परिहास है -
- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-04-2014) को "गल्तियों से आपके पाठक रूठ जायेंगे" (चर्चा मंच-1589) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया रचना व लेखन , उदय सर धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) -भाग - ८
बीता प्रकाशन - जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !
वाह बहुत ख़ूब
वाह बहुत ख़ूब
मार्मिक विडम्बना देश की वर्तमान दुर्दशा पर .
बहुत सुंदर रचना....
यह विडंबना ही है की मुल्क एस लोगों का हाथ पद गया आपकी पीड़ा बहुत वाजिब है.
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