
ख्वाबों में हैं ....
देखना था, देख रहे हैं
अभी देखेंगे ..
कल किसी और ने देखा
आज हम ....
कितना अच्छा लगता है देखना
सबको रोटी ,कपड़ा, मकान,
शिक्षा ,स्वास्थ्य , सम्मान,
अवसर , इंसाफ ....
शब्द नहीं हैं कहने को कम पड़ जाते हैं..
देखे सपने
साकार करने हैं |
ये आरोप गलत है कि
हम विकसित देशों कि श्रेणी में नहीं हैं |
हम हैं ....
हमारे सपने, आदर्श ,संस्कार
उच्चतम हैं, विकसित हैं.....
उन्हें साकार करना है |
समय लगता है...
समय वांछित है ...समझ गए
या समझाये |
तुम भूखे नंगे क्या जानो
सोते जो नहीं हो .
हम राष्ट्र के लिए सोते हैं
सपने देखते हैं |
सपने देखने दो
सोने दो ......|
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
देख रहे हैं देखना नहीं छोड़ेंगे :)
बढ़िया ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-06-2014) को "जिन्दगी तेरी फिजूलखर्ची" (चर्चा मंच 1652) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
एक टिप्पणी भेजें