हकीकत या ख्वाब कहूँ
इसे शराब कहूँ या शबाब कहूँ
उगता नहीं जहाँ उस महफ़िल का
इसे आफ़ताब कहूँ.....
न पायी है कोई तंजीम या अदीबी दुनियां
जिंद के हर सवालों का
इसे जबाब कहूँ .....
किस ओर जाएगी नागिन सी मचलती ये नदी
इसे मनसबदार-ए-हकीकत
या एक ख्वाब कहूँ -
- उदय वीर सिंह
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