बुधवार, 6 अगस्त 2014

अपनी नजर देखता हूँ-


अपनी नजर देखता हूँ-

अपनी आँखों में उजड़ा वो घर देखता हूँ
आग की अब लपट में शहर देखता हूँ -

थी संगमरमरी कल हवेली अपने हुश्न में 
आज अश्कों में भीगा खँडहर देखता हूँ-

था आबाद हाथों, गुल गुलाबों का मंजर
आज बर्बाद गुलशन ,दर- बदर देखता हूँ -

कभी माज़ी की नज़रों से देखा चमन को
आज अफ़सोस अपनी नजर देखता हूँ-

- उदय वीर सिंह
Photo: अपनी  नजर  देखता हूँ- 

अपनी आँखों में उजड़ा  वो घर देखता हूँ
आग  की  अब लपट में  शहर  देखता हूँ -

थी संगमरमरी कल हवेली अपने हुश्न में 
आज अश्कों में  भीगा  खँडहर देखता हूँ- 

था आबाद  हाथों, गुल गुलाबों का मंजर 
आज बर्बाद  गुलशन ,दर- बदर देखता हूँ -

कभी माज़ी की नज़रों से देखा चमन को 
आज  अफ़सोस  अपनी  नजर  देखता हूँ- 

                             - उदय वीर सिंह

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