वर पृथ्वीराज का देव - कवि
अरि गोरी का अनुचर निकला -
कुछ मनसबदार अकबरी जाग्रत हैं
जिसे समझा रत्न पत्थर निकला -
माना संसारी , तो कामी क्रोधी
सन्यासी तो बद्द्तर निकला -
वसन गाँठने की सूरत थी
सुई की जगह नस्तर निकला -
राष्ट्र , प्रेम का सजग अध्येता
राष्ट्र - द्रोह का घर निकला -
श्रद्धा संस्कृति आस्था का नेता
प्रतिकूल माण का स्वर निकला -
राष्ट्र - गीत का परम सनेही
संकल्प शक्ति से कमतर निकला -
- उदय वीर सिंह
अरि गोरी का अनुचर निकला -
कुछ मनसबदार अकबरी जाग्रत हैं
जिसे समझा रत्न पत्थर निकला -
माना संसारी , तो कामी क्रोधी
सन्यासी तो बद्द्तर निकला -
वसन गाँठने की सूरत थी
सुई की जगह नस्तर निकला -
राष्ट्र , प्रेम का सजग अध्येता
राष्ट्र - द्रोह का घर निकला -
श्रद्धा संस्कृति आस्था का नेता
प्रतिकूल माण का स्वर निकला -
राष्ट्र - गीत का परम सनेही
संकल्प शक्ति से कमतर निकला -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-09-2014) को "मास सितम्बर-हिन्दी भाषा की याद" (चर्चा मंच 1736) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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