ये व्रत नहीं रखता
ये नहीं जाता देवालय
ये नहीं करता योग
ये नहीं जानता बजाना गाल
इसे राजनीति नहीं आती
नहीं है अलंकारिक भाषा ज्ञान
कुलीनता कुल प्रमाद दोष
प्रभावहीन है आडंबर अंध विसवास से
अछूता विज्ञान के आलोक से
रोज मरता है रोज जीता है
जख्म से जख्म भरता है
रोज खुलते हैं रोज सीता है
रोटी की जुगत मे
आँसू पीता है
खींचता है जीवन की गाड़ी को जिस्म की समिधा से
इस यज्ञ में पुनः उसका उत्तराधिकारी
नियुक्त होता है
विद्वत समाज प्रलाप कर हँसता हैं
पूर्व जन्मों का फल कहता है
इसको पतित
अपने को पावन कहता है.....
इसकी कौन सी सदी होगी
कौन सी धरती कौन सा आसमान होगा ॥?
इसका भी अगर भारत है ,
कब महान होगा ?
ये नहीं करता योग
ये नहीं जानता बजाना गाल
इसे राजनीति नहीं आती
नहीं है अलंकारिक भाषा ज्ञान
कुलीनता कुल प्रमाद दोष
प्रभावहीन है आडंबर अंध विसवास से
अछूता विज्ञान के आलोक से
रोज मरता है रोज जीता है
जख्म से जख्म भरता है
रोज खुलते हैं रोज सीता है
रोटी की जुगत मे
आँसू पीता है
खींचता है जीवन की गाड़ी को जिस्म की समिधा से
इस यज्ञ में पुनः उसका उत्तराधिकारी
नियुक्त होता है
विद्वत समाज प्रलाप कर हँसता हैं
पूर्व जन्मों का फल कहता है
इसको पतित
अपने को पावन कहता है.....
इसकी कौन सी सदी होगी
कौन सी धरती कौन सा आसमान होगा ॥?
इसका भी अगर भारत है ,
कब महान होगा ?
- उदय वीर सिंह
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