बुधवार, 19 नवंबर 2014

मेरा ईमान होता



मेरा ईमान होता

किसी गरीब का ख्वाब हूँ
देखने दो जिसकी मुझे जरूरत है
बारिस  की बुँदे
भिगो जाती हैं रुखसार के अष्कों को
मैं देखता रह जाता हूँ
कभी प्रिया को ,कभी आसमान को
एक घर होता-
मुकम्मल दाल- रोटी भी नहीं
कभी दाल तो कभी रोटी नहीं -
फैले हाथों को हिकारत से भीख तो  मिल जाती है
काश काम मिलता -
स्वीटजरलैंड में जमा खातों के स्वप्न क्यों
नोफ्रिल खाते में दाम मिलता
सिमट जाता है किरोसिन का तेल
लैम्प से
बच्चे उदास हो जाते हैं बंद कर किताबें
तमस की बाढ़  में
उन्हें उजास मिलता ..
कह रही थी प्रिया करवां चौथ आ रहा है
इसी बहाने एक छाननी का
इंतजाम होता -
भूखे पेट योग का भी बहम क्या पालूँ
नीम और तुलसी का सेवन भी
उबाऊ हो गया है
मर्ज पर कोई मेहरबान होता -
मेरा चश्मा बापू को नहीं लगता
प्रिया की कमीज
बेटी को छोटी होती है
पैजामे में लगे पैबंदों को छिपाते बेटे को देखता हूँ
काश कोई बेचने का
समान होता .......
पूरे होते सपने तो शायद
मेरा ईमान होता
मैं भी तथा कथित
इंसान  होता .....

उदय वीर सिंह




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