धन्य है सतगुरु ! तेरी मीरी और पीरी !
***
खून था किनकी रगो में
नीर था किनकी नजर -
प्यास किसकी खून की थी
कौन रोया दर - बदर -
किसकी दर ने लाज राखी
कौन थे कौमे- जिगर
आह थी और जुल्म था
यौमे जालिम ओ सितमगर -
इंसाफ की शमशीर किसकी
कौन थे कौमे मुकद्दर -
इंसानियत के कौन दुश्मन
कौन प्यारे हमसफर -
जीया जिन्होने हिन्द खातिर
गुरु सिक्ख थे नुरे नजर-
धरती गगन दोनों ही रोये
जब चले अंतिम सफर -
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खून था किनकी रगो में
नीर था किनकी नजर -
प्यास किसकी खून की थी
कौन रोया दर - बदर -
किसकी दर ने लाज राखी
कौन थे कौमे- जिगर
आह थी और जुल्म था
यौमे जालिम ओ सितमगर -
इंसाफ की शमशीर किसकी
कौन थे कौमे मुकद्दर -
इंसानियत के कौन दुश्मन
कौन प्यारे हमसफर -
जीया जिन्होने हिन्द खातिर
गुरु सिक्ख थे नुरे नजर-
धरती गगन दोनों ही रोये
जब चले अंतिम सफर -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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