गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

सरोकार की बातों से...


सुलगते  मुद्दे  हैं , हमारे  और तुम्हारे हैं 
सरोकार की बातें से क्यों बहक जाते हो 

जब  आती बात मुद्दों की सरक जाते हो 
चढ़ा भावनाओं की कड़ाही दहक जाते हो 
छिड़ी बात संवेदना के  गहरी उदासी की
कह राजनीति  की बात निकल जाते हो -

दरबारी कवि भी, पीछे  गए  भाड़पन में
शोला को ,शबनम का  नाम  दे जाते हो 
नंगे  तन  पर हजार लाइक तो बनती है 
देख बेबस को रास्ता कैसे बदल जाते हो -

उदय वीर सिंह 





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